गरीब पर सच्चा
ना दुनिया बदली है ना बदलेगी
वो जरूर बदला लेगी
यदि आपसे थोड़ी सी भी चूक हुई
और उनकी नजर में आई।
आज थोड़ी तबदीली आई है
नजर पैनी और जहरीली हुई है
दिखावा मधुरताका और आपसी का
पर अंदर से सियासी चाल का।
'अरे भाई उसकी बहुत पहुंच है'
पैसा भी बहुत खरचते है
सम्बन्ध रखने में फायदा ही है
बस यहीं प्रथा सर्वदा है।
बात सही भी है
जीवन थोड़ा सा है
क्यों ना उसे रोचक बनाया जाय?
सम्बन्ध बाँधने में क्यों संकोच रखा जाय?
सब तो स्वार्थ के सगे है
सभी अपने में लगे है
कोई बुराई नहीं सही समबन्ध बांधने में!
सब ने रखना है अभिमान अपने आप में।
किसी को पढाना हो तो दो तीन वेद पढ डालो
उसके कानो में अपनी बात जरूर डालो
फिर अपना असर धीरे धीरे हावी होने दो
मकसद अपना पूरा हो जाने दो।
'कोई कहे में रिश्ते से परे हूँ ' और स्वार्थ की बून्द नहीं
तो समझो वो झूठा, मक्कार और आदमी सही नहीं
वो ज्यादा भरोसेमंद नहीं और अपने लायक नहीं
इस से अच्छा गरीब पर सच्चा तो सही।
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वो जरूर बदला लेगी यदि आपसे थोड़ी सी भी चूक हुई और उनकी नजर में आई