माफ़ी काफी नहीं Maafi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

माफ़ी काफी नहीं Maafi

माफ़ी काफी नहीं


जिंदगी के तारणहार से नाइंसाफी है
सुबह उठकर माफ़ी मांग लेना काफी नहीं है
जिंदगी तो दिया है जीने के लिए
अपनों को सीने से लगाने के लिए।

जीना आपको नहीं आता
डर आपको हरदम सताता
हरेक को आप शक की नजरों से देखते
फिर उनसे आप प्रेम की अपेक्षा रखते?

आपका नजरिया गलत है
प्रेम एक दिया हुआ वरदान है
आपको मिला अनुदान है
आपको आगे चलने का एक खुल्ला मैदान है।

क्या है तेरा जो गम कर रहा है?
सब चीज़े तेरी झोली में रख दी है
निकाल एक एक करके जीसकी तुझे जरुरत है
पड़ी रहने दे एक और जिसकी तिझे किल्लत नहीं है।

प्यार पे पेहरा देना सीख
चेहरे पर हंसी लाके मांग भीख
उसकी झोली में देने के लिए बहुत कुछ है
'प्यार से मांग ले ' तेरी हर जगह पूछ ही पूछ है।

माफ़ी काफी नहीं  Maafi
Monday, August 14, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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