में भी हारा. Maibhi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

में भी हारा. Maibhi

में भी हारा
मंगलवार, १५ जनवरी २०१९

मिलना कभी हम से दो बारा
करना पड़े हम से दोबारा
कुदरत की गत में क्या जानू बेचारा?
किस्मत से तो मे भी हारा।

मिलकर सोचेंगे दुसरा पहलु
ना सोचना कभो होगा सहेलु
छूट ना जाए हम से दोबारा
फिर ना करना कोई गंवारा।

मेरा मकसद
नहीं है करना रुखसद
तुम्ही ही तो, मेरी पसंद
नसीब में होगा किसी के चाँद।

छूट गया तो नसीब नहीं होगा
फिर तो होगा जो लिखा भाग्य होगा
नहीं कोसेंगे जो बीत गया हो
समाने हो हो स्वीकार हो।

यही जमाने का दस्तूर होगा
पर हमें मंजूर करना होगा
बात यही तक तो, ठीक सी लगी है
जमाने ने फिर कसर कहाँ छोड़ी है।

हसमुख मेहता

में भी हारा. Maibhi
Tuesday, January 15, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 15 January 2019

welcome s r lekha

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Mehta Hasmukh Amathalal 15 January 2019

यही जमाने का दस्तूर होगा पर हमें मंजूर करना होगा बात यही तक तो, ठीक सी लगी है जमाने ने फिर कसर कहाँ छोड़ी है। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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