मजा कुछ और ही आएगा
प्रभु शीश चरण नमावु
जिवन ज्योत जलावुं
कर जोड़ी ने विनवु
कदी दिल दूजाना ना दुभावु।
हरदम यदि में सोच सकु
या अपने आपको रोक सकु
मेरा जीना बस सफल हो जाए
तनिक saa आशीर्वाद मुझे भी मिल जाए।
दर्पण में भी वैसा ही पाऊँ
जैसा मे दिल में जताऊं
करू प्रार्थना दिल से प्रभु
आप तो खुद ही हो स्वयंभू।
में अनजान, अबोध और बालक हूँ
इन सब से परे, ओर देखता अपलक हूँ
आप बताये मुझे मेरी मंज़िल क्या है?
और सब्र रखना कितना है?
न कुछ आत्मसात हुआ है
न ही कोई ज्योत जली है
बस मन में खालीपा और मोहलीला है
आप शक्ति दे, मुझे और संमजना है।
में अनजान, अबोध और बालक हूँ
इन सब से परे ओर देखता अपलक हूँ
आप बताये मुझे मेरी मंज़िल क्या है
और सब्र रखना कितना है?
न कुछ आत्मसात हुआ है
न ही कोई ज्योत जली है
बस मन में खालीपा और मोहलीला है
आप शक्ति दे, मुझे और संमजना है।
जीवन में कुछ कमी नहीं
फिर भी महसूस होती है
बालक के मन में इच्छा है
पर प्रकट नहीं होती है ।
अज्ञानी को आप शरण में ले ले
कुछ और ना सही तो चरण स्पर्श करने दे
हमें अपने आप आत्मसात हो जायेगा
जीवन में अब मजा कुछ और ही आएगा
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem