मन लागो.. Man Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मन लागो.. Man

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मन लागो
बुधवार, १२ फरवरी २०२०

मन लागो मारो तेरे में
ना आऊं में किसके घेरे में
अँधेरे से दिल क्यों लगाऊं
जब मन प्रफ्फुलित हो जाए उजाले में।

बांसुरी की धुन मेरे मन में बाजे
फिर चिउँटा करू में किस काजे
हरदमतेरा स्मरण रहे
मन ही मन नाम भजता रहे।

हर दिशा और चारो और से
कुछ सुनाई देता धीरे से
में मन ही मन पुकारता रहूं
अपने मनको मनातारहु।

जब नहीं बनती दोस्ती
फिर अजीब लगती ये मस्ती
क्यों में गवाऊं जिन्दी इतनी सस्ती
मन में क्यों राखु इतनी सुस्ती।

सुधबुध मेरी ना रहे
मन भी मेरा ना सुने
बस अपनी धुन में गाता रहे
"हरी हरी" बस भजता रहे।

मीरा ने जहर को पि लिया
मैंने भी मन को मना लिया
बस प्रभु-स्मरण में मन लगा दिया
तुम्हारे नाम का स्मरण किया।

हसमुख मेहता

मन लागो.. Man
Tuesday, February 11, 2020
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 11 February 2020

मीरा ने जहर को पि लिया मैंने भी मन को मना लिया बस प्रभु-स्मरण में मन लगा दिया तुम्हारे नाम का स्मरण किया। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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