मन तो बस उसी मे है
पियूं पियूं पियूं
तुम बिन कैसे जीउ!
तेरे बिन सूना लागे संसार
कहाँ से ढूढ़ के लाउ वो प्यार अपार।
में तो मोहमुग्ध हुई
तन मन से बेसुध हुई
मन तो तल्लीन हो गया
पर तन अपना साथ छोड़ गया
कान, कान, कान बस रटता रहा
मन कुछ और, दिल और सुनता रहा
कैसे कहे दिले हाल, मन मानता ही नहीं
पर भीतर से है कायल, भूलता ही नहीं।
सूरज का सवेरा भाता नहीं
दिन का उजाला रंग दिखाता नहीं
में खोयी रहूँ या फिर सोती रहूँ!
आस मन में हैं उसे दीप से जलाती रहू।
शाम जब ढलने लग जाती है
श्याम की याद भी सताती है
मनमोहक सांवले की सूरत सामने आती है
दल में लगे ना आग, पर मुझे जलती है।
गो धूलि आकाश छा देती है
कान के आनेका सन्देश भी देती है
और ग्वाले उसका साथ छोड़ते नहीं
मेरे मिलने का समय भी वो रखते नहीं।
में रहूंगी प्यासी सदा
पर भूल ना पाऊँगी सूरत, अदा
वो प्यारा र रूप सदा हमारे मन में है
तन हो न हो साथ मन तो बस उसी मे है।
पियूं पियूं पियूं तुम बिन कैसे जीउ! तेरे बिन सूना लागे संसार कहाँ से ढूढ़ के लाउ वो प्यार अपार।
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welcome Govindkumar Nair, Ramesh Thumati Alagarsamy andJaiRam Tiwari like this. Just now · Edited · Unlike · 1