घणघोड़ि एक बस्ती है छोटी सी जहाँ बंगा की दूकान है, उसका संसार उसके भाइयों और दूकान के आसपास है, हाँ बंगा रिखू शेरू टाइगर सभी बारह कुत्तों से सनेह रखता है, टाउ टाउ की आवाज़ बंगा के कान में पड़ी वह खाट से ही चिल्लाया, बंगा भट्टी जो गन्दा थू बारह कुतर सौगी चलदे थी ऐ बंगे कदी फट न पाई तईं मेरे कुतरा जो फट कजो पायी! भौजाई पर गुस्साए बंगा को बिस्तर से उठना मुश्किल है! कुत्तों को मारना बंगा की आत्मा पर चोट करना था!
भट्ट ब्राह्मणो का कुनबा था, सारे भटियात में उनका नाम था, शिव के पुरोहित जो ठहरे, कहते हैं भट्ट ब्राह्मण ने शिव गौरी का लगन पढ़ा था! शिवा नुआला नहीं लेते भट्ट ब्राह्मणो से, शिव यजमान हैं कहाँ मजाल पुरोहित से कुछ स्वीकार करें! देते हैं शिव उनको शिव प्रिये हैं भट्ट ब्राह्मण!
साणु, माधो, बंगा यह तीनो आपस में चचेरे तातेरे भाई हैं! साणु संत आदमी हैं इंसान के वेश में देवता भेद बकरियां उनके खांसने भर से उनके पास चली आती हैं, सफ़ेद साफा और गड़रियों की चोली शिवा के भजन यूँ कहां शिव ही हैं और कौला देवी उनकी पत्नी दिन भर बच्चों की देख रेख करती लुआंचडी पहने छम छम अपने पति का इंतज़ार करती साक्षात् गौरी हैं पति पत्नी में गजब का प्रेम हैं आँख भर से दिल के भेद समझ लेते हैं!
माधो मज़दूरी करते हैं, ढोरों के पीछे पीछे चलते एक आध जड़ देते हैं! चिलम पीने में घंटा बीत जाता है, थिप्पो देवी माधो की पत्नी कुटाई पिसाई करके मुट्ठी भर अनाज जुटा लेती हैं, एक पांव् से लंगड़ा के चलकर भी मीलो दूर बनूड़ी की पहाड़ियों के परे दुधार पर पहुंचना उनके लिए आसान काम है!
बंगा अपने वक़्त का व्यापारी, खूब धन कमाकर गांब में खूब नाम कमाया है! बंगा शादीशुदा नहीं है, भला व्यापर से फुर्सत कहाँ थी, आये दिन शहर आना जाना, बंगा को कुत्तों से बेहद प्रेम है बारह हैं पूरे गिनकर, खाट पर पड़ा बंगा टकटकी लगाकर देखता है रिखू शेरू टाइगर सब हैं एक दुइ त्रि हाँ पूरे बारह हैं अब्ब बंगा चैन की नींद सो सकता है! बंगा अपने कुत्तों को अपनी औलाद की तरह प्रेम करता है! भौजाई पैर विश्वास नहीं खुद खाना देता है फिर आध बची रोटी खुद खाता है, बंगा पडित भी है यजमान के यहाँ जब भी जाये तोह बारह कुत्ते साथ, यजमान भी कभी कभार कानाफूसी करते सबा सेर अनाज तोह कुत्ते ही हड़प कर देंगे मगर पुरोहित के कुत्ते हैं तोह कुछ कहना भी नहीं बनता
अंधेरी रात! आकाश पर तारे भी ठिठुरते हुए मालूम होते थे
भुट्टो की आज खैर नहीं! बंगा खेत के किनारे ऊख के पतों की एक छतरी के नीचे बांस के खटोले पर अपनी पुरानी गाढ़े की चादर ओढ़े पड़ा कांप रहा था. खाट के नीचे उसके संगी कुत्ते रिखू शेरू टाइगर जबरा पेट मे मुंह डाले सर्दी से कूं-कूं कर रहे थे किसी को भी नींद न आती थी.बंगा ने घुटनियों कों गरदन में चिपकाते हुए कहा- क्यों बच्चों, जाड़ा लगता है? कहता तो था, घर में पलंग पर लेट रहो, तो यहां क्या लेने आये थे? अब खाओ ठंड, मैं क्या करूं? जानते थे, मै यहां हलुवा-पूरी खाने आ रहा हूं, दौड़े-दौड़े आगे-आगे चले आये. अब रोओ भुट्टो के नाम को.दम हिलाते कुत्तों ने जम्भाई भरते हुए मनो कहा भुट्टो की मार नहीं खाई जाती! बंगा ने हाथ निकालकर रिखू की ठंडी पीठ सहलाते हुए कहा- कल से मत आना मेरे साथ, नहीं तो ठंडे हो जाओगे. रांड न जाने कहां से बरफ लिए आ रही है. उठूं, फिर एक चिलम भरूं. किसी तरह रात तो कटे! बारह कुत्ते बारह चिलम तो पी चुका सबके नाम की एक एक यह दुकानदारी का मजा है! एक-एक ऐसे पड़े हैं, जिनके पास जाड़ा जाय तो गरमी से घबड़ाकर भागे. मोटे-मोटे. मजाल है, जाड़े का गुजर हो जाय. तकदीर की खूबी!
बंगा ने चिलम पीते हुए कहा- पियोगे चिलम, जाड़ा तो क्या जाता है, जरा मन बदल जाता है.
रिखू शेरू टाइगर टॉमी सब ने उसके मुंह की ओर प्रेम से छलकती हुई आंखों से देखा. जाड़े में ग्राहक मुए काम ही आते हैं! बंगा दूकान पर सो जाता है अपने कुत्तों के साथ इक्का दुक्का बुड्ढे बीड़ी सुलगाने के बहाने आ जाते हैं! चिलम पीने लगते हैं
चिलम पीकर बंगा माधो और साणु अपनी बीती बातें याद करके मुस्कराते हैं! अच्छा भाई चलते हैं! बंगा फिर लेटा और निश्चय करके लेटा कि चाहे कुछ हो अबकी सो जाऊंगा, पर एक ही क्षण में उसके हृदय में कम्पन होने लगा. कभी इस करवट लेटता, कभी उस करवट, पर जाड़ा किसी रीछ की भांति उसकी छाती को दबाये हुए था.
जब किसी तरह न रहा गया तो उसने रिखू टॉमी शेरू और टाइगर को धीरे से उठाया और उनके सिर को थपथपाकर उनको अपने आस पास अपनी गोद में सुला लिया. कुत्तों की देह से जाने कैसी दुर्गंध आ रही थी, पर वह उनको अपनी गोद मे चिपटाये हुए ऐसे सुख का अनुभव कर रहा था, जो इधर महीनों से उसे न मिला था. यह समझ रहा था कि स्वर्ग यहीं है, और बंगा की पवित्र आत्मा में तो उस कुत्तों के प्रति घृणा की गंध तक न थी. अपने किसी अभिन्न मित्र या भाई को भी वह इतनी ही तत्परता से गले लगाता. वह अपनी दीनता से उनपर सब कुछ न्योछाबर कर चूका था, इस अनोखी मैत्री ने जैसे उसकी आत्मा के सब द्वार खोल दिये थे औरउसकी आत्मा का एक-एक अणु प्रकाश से चमक रहा था. वाह रे प्रेम वाह! राम ते लछमन चौपड़ खेले सिया रानी कढदी कस्सदे रामा हो, बंगा ऐंचली के सुरों में ख्य खोया मनो स्वर्ग पहुँच गया हो! कौला देवी यानि मेरी नानी ने मेरे नाना जी को आवाज़ लगाई चलो भी अब चोरी ठण्ड से बोहरा जाएगी मेरी मातु मुझे गॉड में उठाये अपने मायके से सुसराल आने के लिए तैयार हैं उनकी आँखों में आंसू हैं मायके से बिछड़ते हुए, मेरे बड़े मामाजी पूर्ण जी ने कोमल स्वर में कहा सीलौ कुली जो गर्दू मंज लपेटी लै हीथ बड़ा बढ़ी गोया हरे बचे जो ठंड़ेरधि! रुको लाड़ी सामान पाई दे कुली जो मेरे नै ननु ने अपनी बहु यानी मेरी बुआ से कहा! बुआ शांत है बुआ देवी है मामू से बेहद प्यार है उनका आज भी नयी नवेली दुल्हन जैसे रहती हैं बुआ और मामू रूक्को यह ऐसे यह वैसे करते नहीं थकते दोनों की जान बस्ती है एक दूजे में! ताला लगा दिया है मातु मेरी रुआंसी हो गयी हैं आँखों में आंसू लिए विदाई ले ही रही थी मेरी नानी लौंग पहने लुआंचडी पहने ऐसे जाँच रही थी मानो गौरी हैं साक्षात् सौंदर्य की मूरत, नानू आँख भर निहारते हैं,
जोर से आवाज आयी हाई बो घणघोड़ि वाला बंगा मरी गो! सन्न माधो का गाला सूखता जा रहा था! कुत्तों का भौकना तेज़ हो गया
घणघोड़ि रिखू टॉमी टाइगर सब रयी गोवा िटठी! चौर रोज़ जीना! सब उदास समाधि में बैठ गए, मातु आंसू पोंछती मामू के साथ ससुराल बापिस आ गयी हैं, रास्ते भर सोचती हैं इस जाड़े-पाले में जाना भ्रम हो रहा है.बंगा चच्चा नहीं रहे ! अब तो कुछ नहीं सुनाई देता. मुझे भी कैसा धोखा हुआ! सुदुर मुद मुद के देखती मेरी मातु मुझे आँचल में लपेटे चली जा रही हैं!
बंगा नींद से नहीं उठा अब कभी नींद न खुलेगी, चारों तरफ धूप फैल गयी थी और भुट्टो कह रही थी- क्या आज सोते ही रहोगे? तुम यहां आकर रम गए और उधर दुकानदारी चौपट, रिखू टॉमी शेरू टाइगर लिहो-लिहो! लिहो! कूं-कूं कूं-कूं कूं-कूं! भुट्टो भाई और सारा कुनबा रो पड़ा! मरते -मरते दुकानदारी कुत्ते कुनबा भाई भौजाई सब पीछे छूट गया! घणघोड़ि सूनी है!
माधो ने आग जमीन पर रख दी और पत्तियां बटोरने लगा. जरा देर में पत्तियों का ढेर लग गया. हाथ ठिठुरे जाते थे. नंगे पांव गले जाते थे. साणु भेड़ बकरियों को हांकते हुए बनूडी की तरफ बढ़ चले ! जीवन रुकता नहीं बस चलता है चला जा रहा है! लारा मियो धन लारा साँझ भूचि गयी! ऐ दरून दररन बज्दा के आया अम्मा मेरी ओऊ! शिव गौरी के विवाह का पहाड़ी लोक गीत गाते लोग फिर से खेतों में लौट आये हैं! पवित्र लोक गीत पवित्र लोग पवित्र आत्मा भोली सूरत देखो आज धुप निकल आयी सूरज ने सबको गरम आगोश में ले लिए! अम्मम्मा बापू बड़ी बो कॉपीरी अम्मा बापू जो कोढ़ी वर ढूढ़ेया मरी ता जाइयाँ भट्टा भामनुआ कोढ़ी वर जोडिया!
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem