मौसम का लुफ्त Mausam Kaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मौसम का लुफ्त Mausam Kaa

मौसम का लुफ्त

यदि तमन्ना हो जाय औंधा लटकनेकी
जीवन को खतम कर देने की
या तो फिर रेल की पटरी पर जाकर सो जाने की
नहीं कर सकते हम आज सब चीज़े क्योंकि बात है दिल को मनवाने की।

पीना अपना शोख होता है।
पीजीए, पर चार दिवारी के अंदर पीना होता है
पुरुष का पीना लोग सहन कर लेते है
पर स्त्री का पीना देखते ही हानि कर देते है।

आप मुस्कान बिखेरते जाइए
खुश्बु को पसार ते जाइए
मन अपने आप काबू में आ जाएगा
आपके चेहरे की लाली को बढ़ाएगा

वैसे तो सब अपने दिल के मालिक
नहीं सहन करते टिका तनिक
टोकाटाकी से बढ़ता है मनमुटाव
बदल जाते है चेहरे के हावभाव।

पीना दिल करे खूब पीओ
खाओ, पीयो और जलसा करो
अपने रूम में बैठकर चूस्की लगाओ
और मौसम का लुफ्त उठाओ।

मौसम का लुफ्त Mausam Kaa
Thursday, August 31, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 31 August 2017

पीना दिल करे खूब पीओ खाओ, पीयो और जलसा करो अपने रूम में बैठकर चूस्की लगाओ और मौसम का लुफ्त उठाओ।

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Mehta Hasmukh Amathalal 31 August 2017

welcome muskaan madan

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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