में माँग तेरी भर लू Me Maang Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

में माँग तेरी भर लू Me Maang

में माँग तेरी भर लू

ऐसी मेरी नसीब कहाँ!
मेरा सारा जहाँ वहाँ
बस तेरे कहने की ही देरी है
सारा जग मेरा बैरी है।

तू होगी मेरे आँगन की तुलसी
में तो अनाडी ओर ऊपर से आलसी
तेरा आना मेरा शुभप्रभात होगा
जीवन में अच्छी शुरुआत से प्रारंभ होगा।

इश्क़ तो एक बहाना है
उसको अमली जामा पहनाना है
में अभी जाना ही कहाँ हूँ?
मेरा उजाला तू और तेरी हाँ में हां हूँ।

ना कर अब देरी
मेरी दुनिया है अंधरी
बना दे उसे रंगीन और भर दे रंग सुनहरी
वरना मेतो करता ही रहूंगा 'हरी हरी '

तेरी होगी जबानी
पर होगी मेरी कहानी
खूब चर्चे होंगे हमारे
लोग लोटपोट हो जाएंगे हँसते हँसते हमारे बारे।

ना कहना कोई सखी से
वरना हो जाएंगे सब दुखी मन से
उन्होंने भी सपना सजा रखा था
पर मैंने तो उसे तेरे लिए ही सम्हाल के रखा था।

बस अब देरी नहीं
कोई मनसा अधूरी नहीं
में और तू कहानी के दो पेहलू
अब छोड़ जिद ओर आ जा ' में माँग तेरी भर लू '

में माँग तेरी भर लू Me Maang
Saturday, December 17, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 18 December 2016

welcome vijay singh Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 17 December 2016

बस अब देरी नहीं कोई मनसा अधूरी नहीं में और तू कहानी के दो पेहलू अब छोड़ जिद ओर आ जा में माँग तेरी भर लू

0 0 Reply
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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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