नहीं आज Nahi Aaj Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

नहीं आज Nahi Aaj

नहीं आज

ना है मेरी हसियत
ना में छोड़ जाऊंगा वसीयत
बस रखी है साफ़ नियत
करता हूँ में याद उसे नियमित।

में शायद यहाँ नहीं होता
मेरा कारवाँ गुजर गया होता
वो रह गयी होती पीछे पुकारते पुकारते
में भी थक गया होता चलते चलते।

में शायद यहाँ नहीं होता
मेरा कारवाँ गुजर गया होता
वो रह गयी होती पीछे पुकारते पुकारते
में भी थक गया होता चलते चलते।

वो चिल्लाती रहती थी
अपने उसूल पर अड़ी रहती थी
में उसके विश्वास पर कायल था
मेरा ह्रदय उसकी आदत पर ओलगोल था।

आज में जब भी सोचता हूँ
मने में एक चित्र सा ढूंढता हूँ
कुछ लाइन दोरकार उसे लाइव रखना चाहता हूँ
वो मेरे सामने है फिर भी उसी दिल से मानता हूँ।

यही जिंदगी है और यही है सफर
वो रही मेरी संगदिल ओर हमसफ़र
मुझे नही याद आते कोई और अलफ़ाज़
बस वो रोक देती थी मुझे कह के 'नहीं आज '

नहीं आज Nahi Aaj
Wednesday, January 18, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 19 January 2017

welcomeguddi Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 18 January 2017

यही जिंदगी है और यही है सफर वो रही मेरी संगदिल ओर हमसफ़र मुझे नही याद आते कोई और अलफ़ाज़ बस वो रोक देती थी मुझे कह के नहीं आज

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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