नही चाहा.. Nahin Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

नही चाहा.. Nahin

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नही चाहा

बुधवार, १५ अगस्त २०१८

लोगों के लिए में हो गया निकम्मा
निर्लज्ज और नाकाम
मेरा क्या होगा मकाम?
लेगा कोइ मेरे से इंतकाम।

नही चाहा मैंने बुरा किसी का
मददगार रहा सदा उसीका
जो हरदम इसके वांछू था
मानवता का हाथ मुझे छूता था।

मैंने हमेशा चाहा
उनकी मदद करना चाहा
गले से लगाकर उनका दुःख दूर करना चाहा
पर ज्यादा नहीं कर पाया उनका मनचाहा।

कथनी और करनी का फर्क होता है
मेरा काम करने का तरिका लोगों को पसंद नहीं आता है।
इसलिए वो मेरे घोर विरोधी हो जाते है
मेरे जीवन में आंधी बनके आ जाते है।

मेरा मानना है
लोगों की ही चाहना है
जो मेरे मनसूबे मजबूत करती है
और मेरे दिल पर हकूमत करती है।

हसमुख अमथालाल मेहता

नही चाहा.. Nahin
Wednesday, August 15, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 15 August 2018

welcome GHe Rubiales 1 mutual friend 1 Manage Like · Reply · 1m

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Mehta Hasmukh Amathalal 15 August 2018

मेरा मानना है लोगों की ही चाहना है जो मेरे मनसूबे मजबूत करती है और मेरे दिल पर हकूमत करती है। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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