Nhin Sakhi Garbh (Hindi) नहिं सखि गर्भ Poem by S.D. TIWARI

Nhin Sakhi Garbh (Hindi) नहिं सखि गर्भ

जी मिचलाता है

आजकल जी मिचलाता है,
उलटी से मन घबराता है,
पहली बेर, पड़ा यह फेर;
क्या सखि मिचली, नहिं भारी पैर।

निकला पेट, आती लाज,
बताऊँ ना, छुपाऊं ये राज,
मुस्कराते सब, मुझे देख के;
क्या सखि मोटापा, नहिं सखि पेट से।

मन में नूतन जोश भरा है,
पहले का पल बहुत बड़ा है,
जीवन का यह अद्भुत पर्व है;
क्या सखि नव-वर्ष, नहिं सखि गर्भ है।

लेकर आई ढीले कपडे,
तंग का ना रखना लफड़े,
उसे हो आराम की स्थिति;
क्या सखि पति, नहिं नया अतिथि।


- एस० डी० तिवारी

Saturday, January 14, 2017
Topic(s) of this poem: feeling,hindi
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