जी मिचलाता है
आजकल जी मिचलाता है,
उलटी से मन घबराता है,
पहली बेर, पड़ा यह फेर;
क्या सखि मिचली, नहिं भारी पैर।
निकला पेट, आती लाज,
बताऊँ ना, छुपाऊं ये राज,
मुस्कराते सब, मुझे देख के;
क्या सखि मोटापा, नहिं सखि पेट से।
मन में नूतन जोश भरा है,
पहले का पल बहुत बड़ा है,
जीवन का यह अद्भुत पर्व है;
क्या सखि नव-वर्ष, नहिं सखि गर्भ है।
लेकर आई ढीले कपडे,
तंग का ना रखना लफड़े,
उसे हो आराम की स्थिति;
क्या सखि पति, नहिं नया अतिथि।
- एस० डी० तिवारी
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