गरीबी (Poverty) Poem by Dr. Sada Bihari Sahu

गरीबी (Poverty)

Rating: 5.0

खुले आसमान के नीचे
धूप, बरसात, सरदी को अपनाकर
बहाता है पसीना दिन-रात
जीता है जीवन को एक सपना समझकर
भूख मिटाने के लिए कुछ खाना है
खाने के लिए भोजन जुटाना है-
जीवन का है बस इतना ही लक्ष्य
फिर भी वह जीता है
सहर्ष ग्रहण करता है परिस्थितियों से मिली हर देन
मन में नहीं आती कभी किसी के प्रति दुर्भावना
न ही अपना कुछ गँवाने या छिन जाने का भय
न ही कभी दूसरों को धक्का देकर आगे बढ़ जाने का भाव
क्योंकि वह तो है गरीब-अकिंचन
बस इतना-सा है उसका परिचय-चिरंतन
बनते हैं नियम, आती हैं योजनाएं, बहता है धन निर्बाध
जड़ से मिटाएंगे गरीबी करते हैं प्रण सब जन समवेत स्वर
मनीषीगण, नेता, अफसर, स्वयंसेवी संगठन
करते हैं चर्चाएँ, विचार-विमर्श, चिंतन, मनन, मंथन
लिखते हैं रिपोर्टें बड़ी-बड़
रचते हैं विधान- "कैसे हो गरीबों का उत्थान? "
मन में जागता है प्रश्न दुर्निवार-
"क्या सचमुच लागू हुआ है कोई कार्यक्रम? "
"क्या सचमुच गरीबी हुई है कम? "
प्रकटतया तो बस यही दिखता है-
गरीबों को लूट कर धनिकों की संख्या बढ़ाने का ही हो रहा है उपक्रम
प्रकटतया गरीबी रेखा से नीचे हैं निर्धन
धनवान हैं लेकिन दिन और मन से
करते नहीं किसी से लूट और जोर-जबरदस्ती
करते हैं अर्पित अपना श्रम, कर्म-प्राणपण से
पाते है प्रतिफल में सिर्फ अभिशप्त जीवन
गरीब नहीं स्वेच्छा से, अपने मन से
समाज ने, परिस्थितियों ने दिया नहीं साथ उनका
शापित हैं इसलिए वे- और हैं निर्धन
आओ, करें इस पर मिलकर चिंतन
क्यों मिली नहीं मुक्ति अब तक?
क्या कमी है हमारे जीने के तरीके में?
क्या कभी मुक्त होंगे हम
अपने स्वार्थ, अपने लालच और दूसरों को लूटने के आदिम स्वभाव से?

Wednesday, January 17, 2018
Topic(s) of this poem: poverty
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This poem is in Hindi language and talk about Poverty.
COMMENTS OF THE POEM
Dr Dillip K Swain 19 January 2018

You have very nicely portrayed various facets of poverty in this beautiful poem! Thanks for sharing dear Sada...10

2 0 Reply
Dr. Sada Bihari Sahu 19 January 2018

Thank you Dillu for your nice observation and comments on this poem. It is really encourage me a lot.

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