प्यार के मिले पल
बुधवार ६ जून २ 0 १८
अब क्यों है डरना!
जीना है या तो फिर मरना
जीवन की है ये लीला
हमें उसे खुशी है अपनाना।
नहीं कोई जान पाया
जिंदगी में आया और चला गया
जीवन अपना, यूँही गवाया
बस माया को ही अपना बनाया।
हाथ क्या उसे लगा?
जीवन एक बोझ सा, लगने लगा
अर्थ उपार्जन, व्यर्थ सा लगा
वैराग के बादल छाने लगा।
कोई नहीं उसे जान पाया
और जिसने जाना, स्वर्ग को ही पाया
अपने अवगुणों से, मुक्ति को पाया
अजनबी में भी, अपने स्वजन को पाया
कभी किसी को अपना, बना के तो देखो
ना कोई पराया में, दुश्मनी को देखो
प्यार की ताकत को, दिल से पेहचानो
इसी अवगुण को, दिल से निकालो
जिंदगी का मजा, यूँ ही ना गंवाओ
अपनी ख़ुशी को, दिल से ना लुटाओ
कह गया "हसमुख", दिल को ना जलाओ
प्यार के मिले पल, जीके दिलाओ।
हसमुख अमथालाल मेहता
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