Raped Poem by Tribhuvan Mendiratta

Raped

Rating: 5.0

मानवीयता पल-पल हो तार-तार

आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता'.
क्या बलात्कारियों की जाति, कोई धर्म होता है..?
फूल जैसी बच्ची को गिद्धों ने नोंच डाला.
तन से ज्यादा मन को. रोंदडाला
जिस्म के चिथड़ों पर लहू की नदी बहाई थी,
बहुत चीखी चिल्लाई थी,
बदहवास बेसुध दर्द से तार-तार थी लड़की,
लड़की थी बस इसी लिये गुनहगार थी?
क्रूरताकी हद पार कर अंग-भंग कर डाला
मर जाने पर शासन ने राख में बदल डाला
हृदय आज क्रंदन कर रहा है।
असहनीय वेदनाओं के जकड़न में
उलझा है, द्रवित है हृदय।
निरीह, अबला, लाचार सब वासना
पशुता की भेंट चढ़ जाए।
समाज मानवीयता पल-पल हो तार-तार
पैसे और सत्ता के सुख में डूबे हाथी मदमस्त हजार।

Thursday, October 1, 2020
Topic(s) of this poem: females,girl,rape
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 01 October 2020

so sad and cruel show.. I feel so bad and grieved.. real 10 फांसी दो, फांसी दो गुरूवार, १ अक्टूबर २०२० जहां नारी असहाय है और जुल्म की बोलबाला है वहां का अंत बड़ा बुरा होगा जीवन के अंतकाल तक भुगतना होगा। डॉ जाडीआ हसमुख

0 0 Reply
Sharad Bhatia 01 October 2020

आभार आपका की आपने इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति से हम सब को जगाने की कोशिश की फिर एक दाग आज फिर मेरे हिन्दुस्तान के माथे पर दाग लग गया, क्यूंकि मेरे हिन्दुस्तान की बेटी का एक बार फिर से चीरहरण हो गया।। क्यूँ भूल जाते हो तुम अपनी मर्यादा, फिर क्यूँ तुम भूल जाते अपने संस्कार।। यह मेरे द्वारा यह उस जानवर के ऊपर लिखी गई है जो मेरे प्यारे हिन्दुस्तान की बेटी के साथ गलत कार्य करता हैं और अपने आप को बाहुबली मानव कहता है एक बेहतरीन रचना 100++

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success