रोटी के मोहताज Roti Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

रोटी के मोहताज Roti

रोटी के मोहताज

'हसमुख' ने लगाया ठहाका
खूब जोर से हंसा और शुक्रिया करा आपका
'अमन' एक काम और कर दो
अपनी इस ख्वाइश को एक बार और सब के सामने रख दो।

अरे इंसानियत के दुश्मन तुम को किसने रजामंदी दी है?
कितना अनाज सड़ रहा है खुल्ले में?
नसीब नहीं होती रोटी अपने ही मुल्क में!
सब चीज़ को ले रहे है हलके में।

एक तरफ से चीन और दूसरी तरफ से पाकिस्तान
लड़ रहा है सिर्फ हिन्दुस्तान
मजहब के नाम पर बह रहा लहू
में किस किस जो समजाऊँ या कहूं?

गोली आती है सननन सननन
प्राण चले जाते है हर पल
नहीं कर सकता कोई इसका निकाल
कितने ही पड़े है इधर उधर कंकाल।

बस में यदि खिला सकूँ
और फिर धीरे से पूछ सकूँ
चाहिए और कुछ आज के लिए?
मेरे पास भी आज है कुछ बाँटने के लिए।

शुकुन मिलता है जब में दे पाता हूँ
दिल को शांति से समझाता हूँ
बस पेट ही तो भरना है!
क्यों मारना और मरना है।

अमन को वो आने नहीं देंगे
चमन को वो पहचान पाएंगे नहीं
इंसान को शांति से रहने देंगे नहीं
रोटी के मोहताज कर के करते रहेंगे यही।

रोटी के मोहताज  Roti
Thursday, August 24, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 25 August 2017

welcome aman's pen Like · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 25 August 2017

अमन को वो आने नहीं देंगे चमन को वो पहचान पाएंगे नहीं इंसान को शांति से रहने देंगे नहीं रोटी के मोहताज कर के करते रहेंगे यही।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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