सारा जीवन... Saaraa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सारा जीवन... Saaraa

Rating: 5.0

सारा जीवन
बुधवार, ५ दिसम्बर २०१८

सारा जीवन मेरा ऐसे ही कटा!
दुःख को सीने से लगाता रहा
ना मिला मुझे कुछ भी मन चाहा
फिर भी कुछ ना बोला और चुप रहा।

जब जीना है यंही
और मरना भी यही
इन बातों को क्या कहना है सही?
में जीवन से पछताता नहीं।

मालुम है मुझे
जाना है बहुत आगे
कोई रोके या लडे
हम तो अपनी मांग पर अड़े।

रुकना मेरा काम नहीं
मुड़ के देखना मेरी फितरत नहीं
मंझिल आगे अविरत बढे
पाँव मेरे पीछे ना पड़े।

सही हो या गलत
बन गई है अब आदत
सुधरनी होगी तो सुधरेगी हालत
बस बन जाएगी अब एक कहावत।

हसमुख मेहता

सारा जीवन... Saaraa
Wednesday, December 5, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 05 December 2018

सही हो या गलत बन गई है अब आदत सुधरनी होगी तो सुधरेगी हालत बस बन जाएगी अब एक कहावत। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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