सब से अलग...Sab Se Alag Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सब से अलग...Sab Se Alag

सब से अलग

गरीबी
बनाती है करीबी
जोड़ती है रिश्ते भी
चलते रहते है शिरस्ते भी।

गरीब को भी इज्जत होती है
उच्च भावना और मन्नत होती है
जब पूरी हो जाय तब गले मिलना होता है
जनम जनम का बंधन दोहराया जाता है।

गरीब को थोड़ी सी लज्जा आ जाती है
जब उसकी मंशा को थोड़ी सी ठेस पहुँचती है
वो ज्यादा चकाचौग ओर पैसे का नुमाइंदा नहीं बन सकता है
उसका सर सदा उनका आभारी रहता है।

उसका असर उम्रभर चलता है
लड़की जब ब्याह कर जाती है
तो उसका घर ससुराल हो जाता है
पैसेवाले भी उसके घर का सन्मान करता है।

नही टूटते रिश्ते सिर्फ पैसे के खातिर
जरुरत को सब जानते है गरीब या अमीर
हां ये जरूर है बिना पैसे किसी का मान नहीं
हर कोई ठोकर मारेगा और करेगा अपमान यही।

मान लो अपने आपको सब से अलग
बनाते रहे रिश्ते अलग अलग
पर कभी ये भनक ना आने दे
और सबको सुख की नींद सोने दे।

सब से अलग...Sab Se Alag
Friday, December 2, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 02 December 2016

tarun h mehta Unlike · Reply · 1 · Just now 2 Dec by

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Mehta Hasmukh Amathalal 02 December 2016

jagdish suleri Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 02 December 2016

मान लो अपने आपको सब से अलग बनाते रहे रिश्ते अलग अलग पर कभी ये भनक ना आने दे और सबको सुख की नींद सोने दे।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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