जिन्दगी के इस अनोखे सफर में,
क्या लेकर आये थे, साथ क्या ले जाना है।
खाली थी मुठ्ठी अपनी, जब आए थे इस दुनिया में,
जब जाएंगे दुनिया से मुठ्ठी खाली कर के जाना है ॥
जिसको आदत ही नहीं कभी किसी का सुनने की,
उसके आगे क्या अपना दुखड़ा सुनाना है l
खुद ही नाराज होना है खुद से,
और फिर खुद को खुद ही मनाना है ॥
मिलेंगे हजारों इस दुनिया में अपना मन बहलाने को,
आस उन से किस बात का लगाना है ।
बाँट कर कुछ खुशी दुखियारी दुनिया में,
कुछ खुशियाँ उधार ले आना है ॥
जिन्दगी के इस सफर में, मुसाफिर हूँ यारों;
मुझे बस चलते जाना है, मुझे बस चलते जाना है ॥
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A good start with a nice poem, Sumit. You may like to read my poem, Love And. Thank you.