चला मैं मनचला
खुशनुमा और उमंगभरी दुनिया हैं
मिट्टी से लिपटी राह पर
मंजिल हैं वहाॅं जहाॅं मैं चलुं
चला मैं मनचला
इक्बाल खुद्द करे, नसीब खुद्द लिखें
ना खलिश, ना गिला
ना कागज, ना कातिब, ना किताब
ना दिवारों से आरा घर
ना होगा विलंब, तो चले करें आरंभ
चलो मिट्टी से लिपटी राह पर
बाहों मैं जोश, मनलिये संतोष
बैठे रहो कर निंदा मेरी
चला मैं मनचला
चला मैं मनचला
खोजु सुष्ठी मैं छिपे अजमं, अटल और जल के रहस्यों की
जो मेरे समीप हैं
और न चलु मैं उन ग्रहों, चाॅंद और तारों के भ्रमण मैं
अंतरिक्ष की खोज हैं ना मेरी
वो सलामत उन्हें जो खोजना चाहते हैं
उडना जानतें हैं
वो चले मनचले
चला मैं मनचला
लिये अतित का बोज, हैं लजिज जो
उसमैं लदे हैं नज्मं, जख्म
कुछ लोग, कुछ अजीज, कुछ अपने, कुछ परायें
मानो यकीन मेरा ये सामान मैं ना छोड, ना तोंड सकुं
चाहु फिर भी
हर मोंड पर मैं उसे ना हटा पाऊॅं
ना मिटा पाऊॅं, यह न हो पाता मुझसे
बोज अतित का बढं चला हैं
हर मोड पर मैं उसमें इजाफा करता चला हुं
चला मैं मनचला
मुळ कवी: वॉल्ट व्हिटमन
रुपांतर: समीर खासनीस
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