चला मैं मनचला Poem by Sameer Khasnis

चला मैं मनचला

चला मैं मनचला
खुशनुमा और उमंगभरी दुनिया हैं
मिट्टी से लिपटी राह पर
मंजिल हैं वहाॅं जहाॅं मैं चलुं

चला मैं मनचला
इक्बाल खुद्द करे, नसीब खुद्द लिखें
ना खलिश, ना गिला
ना कागज, ना कातिब, ना किताब
ना दिवारों से आरा घर

ना होगा विलंब, तो चले करें आरंभ
चलो मिट्टी से लिपटी राह पर
बाहों मैं जोश, मनलिये संतोष
बैठे रहो कर निंदा मेरी
चला मैं मनचला
चला मैं मनचला

खोजु सुष्ठी मैं छिपे अजमं, अटल और जल के रहस्यों की
जो मेरे समीप हैं
और न चलु मैं उन ग्रहों, चाॅंद और तारों के भ्रमण मैं
अंतरिक्ष की खोज हैं ना मेरी
वो सलामत उन्हें जो खोजना चाहते हैं
उडना जानतें हैं
वो चले मनचले
चला मैं मनचला

लिये अतित का बोज, हैं लजिज जो
उसमैं लदे हैं नज्मं, जख्म
कुछ लोग, कुछ अजीज, कुछ अपने, कुछ परायें
मानो यकीन मेरा ये सामान मैं ना छोड, ना तोंड सकुं
चाहु फिर भी

हर मोंड पर मैं उसे ना हटा पाऊॅं
ना मिटा पाऊॅं, यह न हो पाता मुझसे
बोज अतित का बढं ‌चला हैं
हर मोड पर मैं उसमें इजाफा करता चला हुं
चला मैं मनचला

मुळ कवी: वॉल्ट व्हिटमन
रुपांतर: समीर खासनीस

चला मैं मनचला
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Walt Whitman was an American poet who is considered as the most influential poet who changed the course of poetry. His major work is Leaves of Grass. From the same XII English language Textbook of Maharashtra State Board had incorporated Song of The Open Road
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