वक़्त की दहलीज़ पे जाने कितने ख़्वाब टूट गए
हर साया अपना बन कर आया हर साये के हाथ छूट गए
कुछ लम्हों की कुछ सदियों की इंतज़ार में ही तो गुज़री ज़िन्दगी है
हर लम्हे में एक सदी, हर सदी में कुछ लम्हे रूठ गए
ख़ुद को ख़ुदा समझें इतनी भी जहालत तो नहीं
ख़ुदी पे मगर ऐतबार किया तो ज़लालत की इन्तेहा से टूट गए
टूटे हुए आईने में जो चेहरे को हम बेख़याल देखा किये
बिखरे हुए शीशे क़दमों से लहू लूट गए....
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