एक आवाज़ सुनाई पड़ी है आज कानों में
कुछ नयी, कुछ पुरानी सी
अजनबी मगर पहचानी सी
कुछ बेचैन सा याद दिलाया है उसने
कुछ भूली यादें, कुछ बिसरे लम्हे
सुबह की हल्की सर्द हवाओं की सिहरन
शबनम से भीगी हरी, उजली घास पे नंगे पैरों की कंपन
गर्म, झुलसाती गर्मी में पसीने को सुखाती हवा सी ये आवाज़
बहुत दूर से आई, बहुत नज़दीक ले गयी है मुझे
बचपन के
सर्द हवाएँ तब मूंगफली की महक लाते थे, दवाइयों की कड़वाहट नहीं
बहुत ढूंढा पर दोबारा नहीं सुन सकी हूँ वो आवाज़, शायद
कानों को अब मासूमियत की समझ नहीं
अब नहीं मिलती वो आवाज़…
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A nice poetic imagination, Akshaya. You may like to read my poem, Love and Lust. Thanks