शर्म से झुक जाओ
शर्म से झुक जाओ मुझे देखे हुए
क्या देखा है तुमने मेरा सीना छलनी होते हुए?
कितने लाल खोये है ये धरती को लाल करने?
कितना रक्त पीया है मैंने उसे हरा रखने?
आज मुझे याद कर रहे हो?
अपनी नाकामियां गीना रहे हो?
मेरे ही घर में बच्चो को आना मना है?
सब को मारम्मार कर भगा रहे हो?
मेरे सपूतो को पत्थर मार रहे हो?
सरहद के पार से आतंकवादी बुलाते हो और पनाह देते हो?
पैसे के पुजारी बने हो और आज दुहाई देते हो?
देखते जाओ अब क्या में कर सकती हूँ।
ना ही तुम्हारा कत्ले आम रुकेगा पर आम आदमी यहाँ आके रुकेगा
जब तुम बाकी जगह मकान ले के रेह सकते हो तो वो भी लेगा
वादी को अपना बसेरा बनाएगा और जीवन को महकाएगा
मेरा वादा है हर बच्चा मेरे होगा और अपना ही होगा।
उनकी के नापाक डगर मेरी छाती को क्यों रोंद रहे है?
ये बेशर्म बासिन्दे भूल गए जब सैनिको ने अपना खाना तुम्हे दिया था?
अपनी जान जोखम में डालकर सब को पनाह दी थी
आज तुम उनको और शर्मिन्दा करने जा रहे हो?
देश एक ही रहेगा और हर हिन्दुस्तानी को पुरा हक़ होगा
वो जहाँ चाहेगा वहा रहेगा और पढ़ेगा
उसका ईमान अपना होगा पर वतन एक ही होगा
उसकी धड़कन और जीवन बस मेरे लिए ही होगा।
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Aasha Sharma Nice ink thanks for sharing Hasmukh Mehta ji Like · Reply · 1 · 40 mins Manage