शर्म से झुक जाता है Sharm Se Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

शर्म से झुक जाता है Sharm Se

शर्म से झुक जाता है

जब समझ नहीं आता है
हमारा युवा धन आज क्या कार्य कर रहा है?
क्या यही उसका उद्देश्य रहा है?
मन में एक संशय जरूर पैदा कर रहा है।

जीवन में कैसे लड़की को अगवा करना!
उसकी इज्जत को तार तार करना
ज्यादा मुकाबला करने पर वही पर मार देना
अपनी कालिख का सबुत पीछे छोड़ देना।

किसी के गले की चेन खिंच कर ड़र का माहौल पैदा करना
किसी के घर में घुसकर दिन दहाड़े ह्त्या करना
दबंगाइ अपनाकर अपने को बड़ा आततायी कहलवाना
यह सब हो गया है युवा वर्ग के सपने और जीने की तमन्ना।

सही तो बेचारे निर्धन लश्कर के नौजवान है!
जो थोड़े सी तन्खा के खातिर जान न्योछावर कर देते है
बड़े बड़े लोग आकर थोड़ा बहुत आश्वासन दे जाते है
बाद में ये देश के उपदेशक सबकुछ भूल जाते है।

पंजाब पूरा नशेडी यों से भर गया है
बिहार सिर्फ अपहरण का उद्योग बन गया है
उत्तरप्रदेश में भूमाफिया जोजन फैला हुआ है
रात ही रात में सबको धनपती हो जाना है।

थमा देते है तिरंगा जब जरुरत होती है
देश के नाम पर सौगंध दिलाई जाती है
पडोसी मुल्क से कलाकार आते है बेरोकटोक!
फिर चलती है सब की नोकझोक।

समय आ गया है जोहर दिखाने का
दुश्मन के दांत खट्टे करने का
बहुत हो गया ये खुनी खेल देश के साथ
अब तो करके रहेंगे दो टूंक हाथ

शर्म से झुक जाता है  Sharm Se
Thursday, May 4, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

Balika Sengupta Thanks and regards Hasmukh Mehta sir for your great, wonderful poetic comment.

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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