सोचता छोड़ गया
सोमवार, १९ नवंबर २०१८
समय को नहीं जान पाया
अपने आप को पहचान नहीं पाया
किसी को अपने दिल की बात को बता नहीं पाया
अपने दुःखको खुद ही रोया।
बात करनेसे दुःख कम होता है
दर्द का एहसास नहीं होता है
जो जान सको तो जान लो
अपने आपको इस जंझाल से बचालो।
सब परेशान है इस उलझन से
नहीं छुटकारा मिल पाता मुश्केली से
में सोचता रहा और पूछता भी रहा
पर कोई भी सही जवाब नहीं दे रहा।
समय को जो जान नहीं पाया
उसने अपना वजूद ही खो दिया
हस्ती को मिटा दिया और अपने को निचे गिरा दिया
इंसानियत कि होड़ में, में पीछे ही रह गया।
समय का यही तो है तकाजा
बीती हुई चीजों को भुलाजा
समय किसी की राह नहीं देखता
जो सोचता रह गया उसे, सोचता छोड़ गया
हसमुख मेहता
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समय का यही तो है तकाजा बीती हुई चीजों को भुलाजा समय किसी की राह नहीं देखता जो सोचता रह गया उसे, सोचता छोड़ गया हसमुख मेहता
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