सोचता छोड़ गया... Sochta Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सोचता छोड़ गया... Sochta

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सोचता छोड़ गया
सोमवार, १९ नवंबर २०१८

समय को नहीं जान पाया
अपने आप को पहचान नहीं पाया
किसी को अपने दिल की बात को बता नहीं पाया
अपने दुःखको खुद ही रोया।

बात करनेसे दुःख कम होता है
दर्द का एहसास नहीं होता है
जो जान सको तो जान लो
अपने आपको इस जंझाल से बचालो।

सब परेशान है इस उलझन से
नहीं छुटकारा मिल पाता मुश्केली से
में सोचता रहा और पूछता भी रहा
पर कोई भी सही जवाब नहीं दे रहा।

समय को जो जान नहीं पाया
उसने अपना वजूद ही खो दिया
हस्ती को मिटा दिया और अपने को निचे गिरा दिया
इंसानियत कि होड़ में, में पीछे ही रह गया।

समय का यही तो है तकाजा
बीती हुई चीजों को भुलाजा
समय किसी की राह नहीं देखता
जो सोचता रह गया उसे, सोचता छोड़ गया

हसमुख मेहता

सोचता छोड़ गया... Sochta
Monday, November 19, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 20 November 2018

welcome Ranjan Yadav 1 mutual friend Message

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Mehta Hasmukh Amathalal 20 November 2018

welcome Digish Vora 14 mutual friends 1 Manage Like · Reply · 1m

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Mehta Hasmukh Amathalal 19 November 2018

समय का यही तो है तकाजा बीती हुई चीजों को भुलाजा समय किसी की राह नहीं देखता जो सोचता रह गया उसे, सोचता छोड़ गया हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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