सुनहरा सपना... Sunahara Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सुनहरा सपना... Sunahara

Rating: 5.0

सुनहरा सपना
Saturday, May 25,2019
7: 22 AM

बयां तो करना चाही
पर रह गई अनकही
आप मुड के देखा ही नहीं
मेरे जज्बात को समझा ही नहीं।

थोडा सा मुस्कुरा देते
अपने दिल के रंग बिखेर देते
हम तो यूँही बेसहारा थे
उसमे ही अपनी कामयाबी ढूंढ लेते

थोड़े से तो रुक जाते
अरे सर ही हिला देते
हम वैसे ही दिले हाल जान जाते
और अपने आपको समजा लेते।

ना ढूंढो कोई बहाना
बनालो हमे अपना
हर रिश्ता है सुनहरा सपना
ढूंढ ते है हम वजूद अपना।

हाले दिल बताए नहीं जाते
संजोए जाते है
हर कोई नहीं समजा सकता दिलकी कसक
बस इसीमे ही मिल जाता सबक

हसमुख मेहता

सुनहरा सपना... Sunahara
Friday, May 24, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

Keshi Gupta Hasmukh Mehta shukriya 1 Hide or report this Like · Reply · See Translation · 11m

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हाले दिल बताए नहीं जाते संजोए जाते है हर कोई नहीं समजा सकता दिलकी कसक बस इसीमे ही मिल जाता सबक हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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