सुन्दर सा सेतु Sundar Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सुन्दर सा सेतु Sundar

सुन्दर सा सेतु

आप एक ही राग अलापे
उसकी ही तस्वीर हो आंखोके आगे
सब से अलग और सब से न्यारी
दोस्ती है सब से प्यारी

ना वो मिलता
ना कोई रिश्ता बनता
ना उनसे मुलाक़ात होती
और रिश्तेनाते हकीकत बन जाती।

बस तुम होते गए सुदामा के श्याम
हम भी कहते गए हाथ जोड़ के 'रामराम'
न रखा दिल में कोई राज गुमनाम
सब कर दिया न्योछावर दोस्ती के नाम।

ना होगा विश्वास का अनादर
और नाहीं टूटेगा आदर
बनी रहेगी शुभेच्छा मजबूती के साथ
दोस्ती का होगा मुकाबला आज सरेआम।

जीवन है पतझड़
फिर भी मन रहता अल्हड
कभी चढ़ाव आया तो कभी उतार
फिर भी भजते रहे किरतार।

ना किया किनारा अपनों से
सभी अपनाया बड़े प्यार से
दिल में बन गया एक सुन्दर सा सेतु
यही तो था इंसानियत का हेतु!

सुन्दर सा सेतु  Sundar
Sunday, August 27, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 27 August 2017

ना किया किनारा अपनों से सभी अपनाया बड़े प्यार से दिल में बन गया एक सुन्दर सा सेतु यही तो था इंसानियत का हेतु!

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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