तन्हा... Tanhaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

तन्हा... Tanhaa

तन्हा
रविवार, ९ सितम्बर २०१८

तोड़ दिया तूने वादा
अडी रही और ऊपर से आमादा
पास कर दी हमारे लिए आपदा
और धीरे से कर दीया बीदा।

बस इतना ही होने देना था
तो फिर क्यों बहाना बनाना था?
हम तो बहते गए भावनाओं में
और खो गए सुन्दर सपनों में।

कितने कितने अरमान सजाये हमने?
कह भी दिया सारा आपके सामने
कोई चीज को छिपा या ही नहीं
बात कभी बिगाडी ही नहीं।

हम समज ना सके
रुख जो थे हवा के
बस वो तो बहती गई
और हमें मदहोश करती गई।

अचानक मौसम पलटा
और दांव पड गया उलटा
हम ने ना जाना ऊंट किस करवट बैठेगा
समय आने पर वैसे ही चल देगा।

हम तो रह गए तन्हा
हाँ की हो गई अब ना
कैसे अब हम समझाएंगे?
बीती बात को कैसे भूल पाएगे?

हसमुख अमथालाल मेहता

तन्हा... Tanhaa
Sunday, September 9, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 09 September 2018

हम तो रह गए तन्हा हाँ की हो गई अब ना कैसे अब हम समझाएंगे? बीती बात को कैसे भूल पाएगे? हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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