तेरे उपकार। Tere Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

तेरे उपकार। Tere

तेरे उपकार।


मॉ का दिया हुआ सब कुछ है
जन्नत भी और दोजख भी है
में क्यों चाहु माँ के सिवा?
मेरा कोई मकसद नहीं और आघे जीना।

उसने मुझे शरीर दिया
लोरी बोल बोलकर सुलाया
संसार का सारा सुख दिलाया
खुद भूखे सो कर मुखे खिलाया।

माँ का जीवन कभी दूभर नहीं होने दिया
उसके दुःख लगे ऐसे शब्द का उच्चार नहीं किया
वो ही तो है मेरा सर्वस्व संसार
में सदा व्यक्त करू उसका आभार।

तूने उफ़ तक नहीं किया
मुझे सन्मान से बड़ा किया
हर ख्वाहिश को पूरा किया
में जीवन में गदगद हुआ।

ना होती तू तो क्या होता?
मेरा जीवन कैसे व्यतीत होता?
में जंगली ही रह जाता बिना कोई संस्कार
ये सब तेरे ही तो है उपकार।

Thursday, March 16, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 16 March 2017

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Mehta Hasmukh Amathalal 16 March 2017

welcoem rupal bhandari Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 16 March 2017

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Mehta Hasmukh Amathalal 16 March 2017

मॉ का दिया हुआ सब कुछ है जन्नत भी और दोजख भी है

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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