'थोडा सा कड़वा अनुभव' Thodasaa Kadvaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

'थोडा सा कड़वा अनुभव' Thodasaa Kadvaa

'थोडा सा कड़वा अनुभव'

खुशियां मनाओ भाई
नोटबंधी क्या क्या रंगीनियां लाइ
शादियों की शान में वृद्धि आई
कहीं भी रौशनी फीकी नजर नहीं आई।

कर्ज लेकर भी हम देखा देखी करते थे
शादियों और ब्याह में बहुत खर्चा करते थे
अब हाथ थोड़ा तंगी मे है
हालात में तनाव जरूर है।

रोग का निराकरण बहुत ही आवश्यक है
दवाई का डोज़ महज जरुरत है
जब पूरा तन ही रोगग्रस्त है तो
इंसान का त्रस्त होना स्वाभाविक है।

यदि रोग का कारण हमारी इच्छा शक्ति है!
तो उसके ऊपर है देशभक्ति
ना करें आतंक्वादीयो की मदद
हमारे जवान मर रहें है सरहद पर।

ये वो पैसे है जिसे वो पत्थर मारनेवालों को देते है
पोलिसवालो को ड्यूटी नहीं करने देते और हथियार छीन लेते है
भारत को छिन्न भिन्न करनेवालें अपने बच्चे विलायत भेजते है
खुद चंदा इकठा करते है और इस्तेमाल देश के खिलाफ करते है।

ऐसी प्रवृत्ति पर नकेल कसना आवश्यक था
जनता को बताकर कदम उठाना मौतका बुलावा था
अंदर के और बाहर के दुश्मनों को आगाह करना था
बस यही कारण था और निगाह को तेज करना था।

जनता सब जानती है
और मानती भी है
'थोडा सा कड़वा अनुभव' भी मान्य रखा है
अब देखना है सपने सुहाने कौन कौन दिखा रहा है।

'थोडा सा कड़वा अनुभव' Thodasaa Kadvaa
Tuesday, November 15, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 16 November 2016

welcome Shyla Dominic Unlike · Reply · 1 · 1 hour ago

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Mehta Hasmukh Amathalal 16 November 2016

x welcoem Michelle Stemmes Unlike · Reply · 1 · Just now 54 minutes ago

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Mehta Hasmukh Amathalal 16 November 2016

xwelcome Katleho Khalifa Thekethe Unlike · Reply · 1 · Just now 54 minutes a

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Mehta Hasmukh Amathalal 15 November 2016

जनता सब जानती है और मानती भी है 'थोडा सा कड़वा अनुभव' भी मान्य रखा है अब देखना है सपने सुहाने कौन कौन दिखा रहा है।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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