तीर बस छोड़ते रहे Tir Chhodte Rahe Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

तीर बस छोड़ते रहे Tir Chhodte Rahe

तीर बस छोड़ते रहे

सवाल दिली सच्चे थे
जवाब देते तो पकड़े जाते
तो हमने चुप्पी साध ली
और बात इधरसे उधर घुमा ली

उनकी बातोँ मे दम था
पूछने का जोम था
हर सवाल पैना था
जवाब देना बहुत ही कठिन था

मई इ उनको रोकना चाहा
बीच बीच मे टोकना चाहा
पर वो अपनी बात पर अड़े रहे
पूछते पूछते एक बात पर खड़े रहे
'क़हाँ कहाँ प्यार हुआ ' उसका जिक्र करते रहे।

में शर्मसे पानी पानी हो रहा था
वो भी अपनी पकड़ जमा रहा था
मैंने अब रोकने की कोशिश नहीं की
'हाँ हाँ करता गया' जो जो बात सही थी।

सवाल वो हो
निशाना वो ही
हम सिर्फ निशाने पर रहे
वो लोग तीर बस छोड़ते रहे

तीर बस छोड़ते रहे  Tir Chhodte Rahe
Friday, March 4, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 04 March 2016

सवाल वो हो निशाना वो ही हम सिर्फ निशाने पर रहे वो लोग तीर बस छोड़ते रहे

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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