तुम्ही ही खेवैया..tum hi ho Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

तुम्ही ही खेवैया..tum hi ho

तुम्ही ही खेवैया

बस एक ही भजु में नाम तेरा
हो जाए काम तमाम मेरा
मेरे घटघट में बसे हो उम राम
मेरी नस नस में हो घनश्याम।

सुबह में समरू
याद करलु
हर कदम पर, हर लबो पर
स्मरण करू में बारबार ।

में ना जानू जग को सारा
कोई होगा अच्छानरसा और कोई आवारा
में तो भजलु नाम तेरा
बनजाना मेरा अटूट सहारा।

में अबोध बालक क्या बोल पाऊं!
अवरोध जीवन में सह ना पाउ
तुम ही बन ना 'पार्थ' मेरे
नाव पार हो जाए तेरे सहारे।

मैंने ना चाहा बुरा करना
आप ही मुझ को शक्ति देना
हर कोई मुझे अपना सा लगे
मन में आके बस ने लगे।

में ऐसा चाहु अपने दिल में
प्यार दे जो भरपूर मन में
भजन मेरा, दिल से होना
सब को है अपना एक ही रोना।

में ना चाहु धन या दौलत
बस एक देना मौत में शौकत
लोग मुझे बस इतना कह सके
मरके भी जो न सके।

मारो रामजी, मारो लालजी
में न रहूँ कभी दिल से लालची
गरीबी मुझको तन से प्यारी
माया है आपकी सब से न्यारी।

मे वारी वारि जाऊ ओ गिरधारी
लाज रखियो सदा हमारी
कदी मर ना जाये मत हमारी
तुम्ही ही खेवैया तुम ही मुरारी।

Thursday, November 20, 2014
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 20 November 2014

तुम्ही ही खेवैया बस एक ही भजु में नाम तेरा हो जाए काम तमाम मेरा

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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