तुम्हारी सूरत
शुक्रवार, १४ दिसंबर २०१८
तुम्हारी सूरत मुझे भायी मायी
मेरी आरजू को जगा गयी
मन ही मन मेंकल्पना करता गया
तेरे बारे मेंसोचता हुआ सहमा गया।
बस देखता ही रह गया
तेरी आँखों के भाव पढता गया
उसमे बदलता हुआ रंग मुझे भा गया
मन ही मन में मुस्कुराता गया।
तुम जल बिन बन मछली हो
मेरे आँखों की किकी हो
में उसी नजरों से देखना चाहता हूँ
और धीरे से सांस लेना चाहता हूँ।
जब भी में मेरा प्रतिबिम्ब देखता हूँ
साथ में तुम्हे खड़ा पाता हूँ
जीवनसंगिनी के रूप में पाना चाहता हूँ
और धन्य हो जाना चाहता हूँ।
आज ही नयी राह मिली है
आँखे भी राहबर बनी है
हाथ दे दो हाथ में
और चल पडो साथ में।
हसमुख मेहता
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आज ही नयी राह मिली है आँखे भी राहबर बनी है हाथ दे दो हाथ में और चल पडो साथ में। हसमुख मेहता