तुम्हारी सूरत.. Tumhari Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

तुम्हारी सूरत.. Tumhari

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तुम्हारी सूरत
शुक्रवार, १४ दिसंबर २०१८

तुम्हारी सूरत मुझे भायी मायी
मेरी आरजू को जगा गयी
मन ही मन मेंकल्पना करता गया
तेरे बारे मेंसोचता हुआ सहमा गया।

बस देखता ही रह गया
तेरी आँखों के भाव पढता गया
उसमे बदलता हुआ रंग मुझे भा गया
मन ही मन में मुस्कुराता गया।

तुम जल बिन बन मछली हो
मेरे आँखों की किकी हो
में उसी नजरों से देखना चाहता हूँ
और धीरे से सांस लेना चाहता हूँ।

जब भी में मेरा प्रतिबिम्ब देखता हूँ
साथ में तुम्हे खड़ा पाता हूँ
जीवनसंगिनी के रूप में पाना चाहता हूँ
और धन्य हो जाना चाहता हूँ।

आज ही नयी राह मिली है
आँखे भी राहबर बनी है
हाथ दे दो हाथ में
और चल पडो साथ में।

हसमुख मेहता

तुम्हारी सूरत.. Tumhari
Friday, December 14, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 14 December 2018

आज ही नयी राह मिली है आँखे भी राहबर बनी है हाथ दे दो हाथ में और चल पडो साथ में। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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