उत्तम मरना भी...uttam marna Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

उत्तम मरना भी...uttam marna

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उत्तम मरना भी...uttam marna


प्राणी जीवन आपने कहा ठीक है
वाणी संयम की सम्मति भी मुक है
हर सोच में अपना तरिका अपनाना लाजमी है
'पर जो जीता वो ही सिकंदर' वो ही आदमी है

जीवन नैया को पार पर कराना अपना कर्त्तव्य है
यह एक ऋषिमुनियों के ज़माने का वक्तव्य है
अंगूठा गुरुदक्षीनाके रूप में काटके देने वाला एक्लव्य ही था
पर ये सब उस जमाने के अनुरूप संयोगिक मंतव्य था

'आप जीये बदतर जिन्दगी' आज के ज़माने में बेवकूफी है
कैसे जीना और करना ये जाती मनसुफी है
फल्सुफा अपने आप में एक मिसाल होता है
पर उके पास होता है जिनका दिल विशाल होता है

अपने उसूल अपने पास ही रहने चाहिए
किसी और को पास खिंच ने मजबूर करने नहीं चाहिए
आप साफ़ सुथरी जिन्दगी जीयो यह अच्छी बात है
'पर दिन आपकी मृत्युशैय्या तैयार करे' वैसी कहावत नहीं होनी चाहिए

जीवन में सज्जनता का एह्सा होना गर्व की बात हो सकती है
इंसानियत को परिधि में रहकर जीने से प्रगती रूकती नहीं है
पर उसके पुरे समय आंचल समझकर ओढ़े रखना आवश्यक नहीं हे
हम इस बात को न समजे इतने कम वयस्क भी नहीं है

उसूलों से भरे इंसान ज्यादातर की गर्त में डूब जाते है
सिर्फ कुछ इंसान उनपर दया खाकर थोड़े नजदीक जाते है
उत्तरप्रदेश के एक लोकसेवक के पास अपने दफ़न के लिए कुछ नहीं था
लोगो के चंदे से ही उनका क्रिया कर्म संभव हो पाया था

बेहतर जीना और सादगी से जीना अलग अलग पहलु है
कुछ हदतक उसूलो को तिलांजलि देना मुकामु भी है
'हम इंसान हे माटी के पुतले'दुसरो के लिए जीना भी जीना है
कर जाए एसा कुछ जो जीना भी केहलाए और उत्तम मरना भी

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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