विचार के पक्के
सच्चा या झूठा
इश्क़ तो है ही अनूठा
क्यों पानी में से पोरे निकाल रहे है?
इश्क़ के नामका अंतकाल कर रहे हो
इश्क़ में सब अंधे
सब झूठे और खंधे
हो गया काम
तो सब को रामराम।
पर ऐसा सब के साथ होता नहीं
सब अपने प्यार को शूली चढ़ाते नहीं
कदर करते है और नवाजते है
समय आने पर दौड़कर मदद करते है।
इश्क़ मेरे वतन से भी होता है
कैसे लोग अपनी बलि दे देते है!
ना परवा सुखचैन की ना घर की
बस चल पड़े शान के लिए वतन की।
ना होने देंगे गुस्ताखी इश्क़ में
ना होगी माफ़ी शरतचुक में
ये कोई बच्चों का खेल नहीं
जिस के खरिदार सब यही।
ना तोलो इसे अपने मनसूबे से
करलो प्रार्थना काबे से
मुहब्बत और भगवान् एक ही सिक्के है
बस आप खुद ही विचार के पक्के है।
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ना तोलो इसे अपने मनसूबे से करलो प्रार्थना काबे से मुहब्बत और भगवान् एक ही सिक्के है बस आप खुद ही विचार के पक्के है।