विचार के पक्के Vichaar Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

विचार के पक्के Vichaar

विचार के पक्के


सच्चा या झूठा
इश्क़ तो है ही अनूठा
क्यों पानी में से पोरे निकाल रहे है?
इश्क़ के नामका अंतकाल कर रहे हो

इश्क़ में सब अंधे
सब झूठे और खंधे
हो गया काम
तो सब को रामराम।

पर ऐसा सब के साथ होता नहीं
सब अपने प्यार को शूली चढ़ाते नहीं
कदर करते है और नवाजते है
समय आने पर दौड़कर मदद करते है।

इश्क़ मेरे वतन से भी होता है
कैसे लोग अपनी बलि दे देते है!
ना परवा सुखचैन की ना घर की
बस चल पड़े शान के लिए वतन की।

ना होने देंगे गुस्ताखी इश्क़ में
ना होगी माफ़ी शरतचुक में
ये कोई बच्चों का खेल नहीं
जिस के खरिदार सब यही।

ना तोलो इसे अपने मनसूबे से
करलो प्रार्थना काबे से
मुहब्बत और भगवान् एक ही सिक्के है
बस आप खुद ही विचार के पक्के है।

विचार के पक्के Vichaar
Friday, August 18, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 18 August 2017

ना तोलो इसे अपने मनसूबे से करलो प्रार्थना काबे से मुहब्बत और भगवान् एक ही सिक्के है बस आप खुद ही विचार के पक्के है।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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