हैं राम राम का देश यही, तुलसी का है उपदेश यही।
यही भागीरथ परिपाटी है, हां यही अवध की माटी है।।
है धाम पुण्य यह धामो का, श्रीरघुवर के बलिदानों का।
यही सागर की ख्याति है, हां यही अवधि की माटी है।।
लहर रहा झंडा जो नभ में, है सनातनी संतानों का।
चुन चुन कर बदला लेंगे हम, हुए हुए अपमानों का।।
है ज्ञात नहीं तुमको, श्रीरघुवर की प्रभुताई का।
है ज्ञात नहीं तुमको, क्षत्रियों की ठाकुरई का।।
धरती से अंबर तक फैली, है जिसकी ख्याति।
गौर से देखो, यही है अवध की माटी।।
मुझे पता था, बात नहीं तुम मेरी मानोगे,
इस पुण्यधरा की मिट्टी को, कभी नहीं पहचानोगे।
लेकिन बतलाने आया हूं, तुमको बतलाकर जाऊंगा।।
अवध से मिट्टी लाया हूं, तुम्हें लगा कर जाऊंगा।
अरे मानते नहीं, मत मानो, ,
सोने को कभी मत पहचानो,
नईया तेरी जीवन तेरा, ,
एक पल निशा बिकट सी है,
दूजे पल स्वच्छ सवेरा है, ,
नईया पार लगानी है?
तो धर लो मस्तक पर इस मिट्टी को, ,
ये राम लला का डेरा है।।
क्या इतने भी नेक कर्म ना तेरे?
अवध धरा को चूम सके, ,
हनुमानगढ़ी की गलियों में,
मतवाला होकर झूम सके, ,
छोड़ो जाने दो, मुझको क्या?
सोये हो सोये रहो, मुझको क्या?
क्या मतलब मुझको तुमसे?
तुम इस अंधकार में पड़े रहो।
अवध नगर से आया था,
सोचा कुछ खबर सुनाऊंगा, ,
कान से तुम तो बहरे निकले,
बात अब किसे बताऊंगा।।
कनक भवन की सबरी मां,
हनुमानगढ़ी की सीढ़ी, ,
सरयु माता का पावन जल,
रामलीला के मुखड़े की चमक, ,
अब किसे दिखाऊंगा।
कान से तुम तो बहरे निकले, ,
बात अब किसे बताऊंगा।।
देखना चाहते हो, तो ले चलता हूं,
तुमको अवध घुमाने मैं, ,
किये गये अपराधों का,
पश्चाताप कराने मैं, ,
क्या कहते हो डर लगता है?
राम नाम की माला से,
रहते हो मदमस्त हमेशा।
हालाहल की प्याला से ।।
क्या पुण्य कर्म कुछ किया नहीं?
बस पाप किये, मधुशाला से, ,
मत घबराओ अबोध मानव,
ये बात जरा सा है, ,
तनिक भी पुण्य नहीं है?
बस पाप जरा सा है?
धुल जाएंगे पाप सभी,
सरयु माता की घाटी में, ,
चलो रामलला को देखो ।
श्रीअवध की माटी में।।
पलभर में नईया पार लगेगी।
राम नाम का गीत सदा,
चिड़िया भी जहां है गाती, ,
है प्रणाम आपको है अवध की माटी।
हां यही अवध की माटी।।
~विवेक शाश्वत 🖊️
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem