संघर्षों के बड़े शिखर हैं,
पथ पर मेरे अड़े खड़े हैं।
चलना मुश्किल इन राहों पर,
पैरों में कांटे गड़े पड़े हैं ।
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हैं राम राम का देश यही, तुलसी का है उपदेश यही।
यही भागीरथ परिपाटी है, हां यही अवध की माटी है।।
है धाम पुण्य यह धामो का, श्रीरघुवर के बलिदानों का।
यही सागर की ख्याति है, हां यही अवधि की माटी है।।
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पार्थगाथा
प्रातः हाथी सजे हुए थे,
घोड़े कुछ घबराए थे, ,
मानो रणभूमि मध्य स्वयं यम,
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गांव की झोपड़ी
है नमन तुम्हें यै पवित्र मिट्टी,
मन से लिपटी तन से लिपटी, ,
नमन तुम्हें ये पवित्र मिट्टी।
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संघर्षों के बड़े शिखर हैं,
पथ पर मेरे अड़े खड़े हैं, ,
चलना मुश्किल अब राहों पर,
पैरों में कांटे गड़े पड़े हैं।
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भूख प्यास सब त्याग सदा,
चलता राही राहों पर, ,
चलता है खुद का शव लेकर,
राही अपने कंधों पर।
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एक सुकून मिलता है तुझे देख कर,
मैं गुमसुम हो जाता हूं तुझे चाहकर,
मायूस ही गुजरता है मेरा वो दिन..
बातें ना तुझसे तो भटकता हूं दरबदर।।
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