वतन को बचा लो, कलम के सिपाही।
जिन्हें कुछ न आता, हैं खाते मलाई।
ये दिल कह रहा है, ये हालत है कहती।
अगर हम न होते, तो दूनियाॅ न होती।
कहाॅ हम खड़े थे , कहाॅ जा रहे हैं।
हर एक मोड़ पे ददॆ व ग़म पा रहे हैं।
गरीबों की दुनिया ऊजड़ सी गई है।
ये जूलमों सितम से ये नफरत बढ़ी है।
जिधर देखता हूॅ, ऊधर है बूराई।
शहर गाॅव टोले में हर सू लड़ाई।
वतन को बचा लो- - - - - - -
अक़ल से जो अंधे, हैं नादान कोडे।
वो रिश्तौ के बंधन, को पल भर में तोड़े।
सयासत के रहबर का, उनसे है नाता।
जिन्हें लिखना पढ़ना, बहुत कम है आता।
ऊठो तुम ये गफ़लत में, क्यो सो रहे हो।
जम़ी आसमा ये ज़हाॅ खो रहे हो।
जगो और सब को जगाओ कलम से।
धनि-आदमी है, ये ईल्मो हूनर से।
पढ़ो मेरे भाई , बढ़ो मेरे भाई ।
वतन को बचा लो, कलम के सिपाही।।।
रचना एंव लेख: - 'अंजुम फिरदौसी
ग्रा+ पो - -(अलीनगर, दरभंगा बिहार)
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