( दिल्ली की हवा)
हवा कह रही है, फ़िज़ा कह रही है!
ये आलूआदगी की वबा कह रही है!
ये अँधेरे धुएं का बदल सा पहरा !
ये दिल्ली को दिल की सदा कह रही है!
शजर तुम लगाओ न कचड़े जलाओ!
खोदाया खुदी पे ज़रा रहम खाओ!
ये ज़हरीली कल से हवा बह रही है!
ये आलूआदगी की वबा कह रही है!
जो गाड़ी का पेट्रोल , डीज़ल जलेगा!
तो धुंआ यक़ीनन हवा में मिलेगा!
परेशानियां होंगी हर एक बशर को!
बचा लो मेरे भाई , अपनी शहर को!
ये दिल्ली की प्यारी अदा कह रही है!
ये आलूआदगी की सदा कह रही है!
रचना &लेख: - अंजुम फिरदौसी (ग्रा& पो-: अलीनगर, दरभंगा, बिहार) 847405
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