काश हम हिन्दी सप्ताह न मनाते होते (Wish We Did Not Celebrate Hindi Week) Poem by Dr. Sada Bihari Sahu

काश हम हिन्दी सप्ताह न मनाते होते (Wish We Did Not Celebrate Hindi Week)

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काश हम हिन्दी सप्ताह न मनाते होते
यदि हिन्दी को दिल से अपनाए होते
कहने को तो हम बहुत कुछकहते हैं
क्या सचमुच कभी उसको दिल से मानते हैं
ऎसा होता तो आज 70 साल बाद भी,
हिन्दी की यह स्थिति कुछ और होती
काश हम हिन्दी सप्ताह न मनाते होते,
यदि हिन्दी को दिल से अपनाए होते

अंग्रेज चले गये लेकिन अंग्रेजीयत आज भी जिन्दा है
फर्राहट से अंग्रेज बोलने वालों को हम उच्च शिक्षित समझते हैं
हिन्दी बोलें तो कुछ अनपढ़ गंवार मानते हैं
क्या यह स्थिति अपनी राष्ट्रभाषा की होती है
अपने ही घर में इस तरह लज्जित होना पड़ता है
काश हम हिन्दी सप्ताह न मनाते होते,
यदि हिन्दी को दिल से अपनाए होते


नियम, अधिनियम, कार्यशाला और संकल्प
करते हैं हिन्दी को प्रयोग में लाने के लिए
जन्म से पहले उसे जिन्दा गाड़ देते हैं
जैसे कोई छूत की बीमारी है
काश हम हिन्दी सप्ताह न मनाते होते,
यदि हिन्दी को दिल से अपनाए होते


यह कैसे विडंबना है
एक सुदृढ़, सरल, सुंदर भाषा
होते हुए भी विकलांग है
शहिदों की तरह हिन्दी दिवस पर याद आती है
और कुछ ही क्षणों में हम भूल जाते हैं
काश हम हिन्दी सप्ताह न मनाते होते,
यदि हिन्दी को दिल से अपनाए होते


आओ चलो हिन्दी को दिल से अपनाएंगे
अपने गिले शिकवे मिटाएंगे
सब लोग हिन्दी भाषा के सूत्र में बंध जाएंगे
देश को एक प्रगति की और ले जाएंगे
हिन्दी दिवस नहीं, हिन्दी पर्व मनाएंगे
राष्ट्रभाषा से अंतर्राष्ट्रीय भाषा की और ले जाएंगे

Friday, January 19, 2018
Topic(s) of this poem: hindi,language
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This poem is in Hindi language and talk about the importance of hindi language.
COMMENTS OF THE POEM
Dr Dillip K Swain 19 January 2018

नियम, अधिनियम, कार्यशाला और संकल्प करते हैं हिन्दी को प्रयोग में लाने के लिए जन्म से पहले उसे जिन्दा गाड़ देते हैं जैसे कोई छूत की बीमारी है..Well penned my dear friend Sada.....10

2 0 Reply
Dr. Sada Bihari Sahu 19 January 2018

Thanks a lot my dear friend Dillu for your comments and liking the poem. Thanks again.

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