याद आती रही धीरी धीरी
दरवाजा अंदर से खुलता है
पर गुहार बाहर से लगती है
बस हम कहते रहे
वो सुनते ही रहे।
हम आहे भरते रहे
वो हंसी के फूल बिखेरते रहे
हमने पुछा: क्यों हंस रहे हो'?
जवाब आया 'पंखी को दाना डाल रहे है'
वो समझता है ' प्यार एक खिलौना है:
हम कहते रहे 'आग से खेलना है '
उसने फिर कहा 'आग तो बुज सकती है'
हमने कहा 'अंदर से वो सुलगती रहती है'
खेर अपना अपना अंदाज़ है
नजरअंदाज भी नहीं करना है
जो है उसका आगाज करना है
मन का भीतर से इलाज करना है।
पता नहीं प्यार कब हो जाता है
कहाँ से आता है और कहा चला जाता है?
मुश्किल में पद जाती है छोटी सी जान
सीधे सादे इंसान भी रहते है बेजान।
हम ठहरे अनाडी
बिन अक्कल के पुजारी
पता नहीं वो रात कैसे गुजारी?
पर उसकी याद आती रही धीरी धीरी।
welcome 1Manzil Rajput Unlike · Reply · 1 · Just now 2 hours ago
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
हम ठहरे अनाडी बिन अक्कल के पुजारी पता नहीं वो रात कैसे गुजारी? पर उसकी याद आती रही धीरी धीरी।