Yaadin Kuch Ankahi Si.... Poem by yash kumar

Yaadin Kuch Ankahi Si....

बागीचे की वो कुर्सी जो दिखती है तन्हा अभी, ,
रखी है कब से उस सागर किनारे बरगद की गोद में.…
नहीं है लेकिन अकेली वो, , उसके हर अंश संग,
हमारी गुजरी बातों की यादें है उसके जहन में...

उस पुराने वृक्ष के बिखरे सूखे पत्तो संग, ,
जिंदगी के लम्हें खो गए है आज कहीं….
यादों की ये सुहानी पवन इन पत्तों संग, ,
ले ना जाए उड़ा कर मुझे उन लम्हों कि गोद में कहीं….

साँझ ढले अपने आशियाँ चले पंछियो संग, ,
बीते थे वो लम्हें, उस कृष्ण चाँद के आगाज में.
यादों की इन बेइन्तहा परतों में दबे वो दिन, ,
जिन्दा है आज भी इन सहजे हुऐ पुराने ख़तो में ....

उस अतुल सागर को छलकाने की आस में, ,
चाँदनी की ओट में वो पूरब की मेघांशी…
देखी थी उस पल मैने उस सागर के तट पर, ,
तुम्हारे चहरे पर आयी एक मासुम सी खुशी…

सुकुन के उन पलों में जो सहारा था तुम्हारा,
उन कांधो पर तुम्हारी जुल्फ़ों का स्पर्श है आज भी…
उन यादों कि एक पोटली रखी है बांध कर मैने, ,
ली है उसने जगह तुम्हारी, , मेरे इस दिल में अभी…

हुई है अब ये बातें पुरानी बहुत, इस ख़ुशनसीब दिल कि किताब में, ,
चुभती है अब तो शूल सी वो, , मेरी जिंदगी के इन बहतरीन पन्नो में…

लेकीन कहाँ तक जायेगी मुझे छोड़ कर तुम्हारी धुँधली बिसरी यादें, ,
जानती है अब तो वो भी, , तुम मेरी साँसों में अब तक भी जो बसी हो..

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This poem is about my sole person, who is not with me any more for some reasons.. we used to seat in a garden near a lake for hours… that place have a space like a heaven in my heart and in my memories…
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