Zindgi Poem by Sahil Haar gya

Zindgi

Rating: 5.0

शुरुआत है ज़िंदगी की और हारी सी लगती है...

रोशनी भी मुझे याहा अन्धेरे मे लगती है....

मंजिल धुन्ध्ले सागर मे है याहा,
और देखने पर गायब सी लगती है....

क्या पाया उसे पीछे मुड़ कर देखे,
पर देखने पर यादे भिगि सी लगती है.....

पाने की कोशिश बोहत है याहा,
सीखने की साज़िश बोह्त है याहा,
फिर जाने क्यो होस्लो की बुल्न्दी छोटी सी लगती है...

डर नही मुझे रेत के हाथ से फिसलने का,
पर क्यो मुझे हर कोशिश नाकाम सी लगती है....

कुछ कर ना सके जो ज़िंदगी मे,
उनकी ज़िंदगी क्यो मुझे अधूरी सी लगती है....

क्यू मुझे हर कोशिश नाकाम सी लगती है,
जाने क्यो ये ज़िंदगी अधुरी सी लगती है.... Sahil

COMMENTS OF THE POEM
Mithilesh Yadav 28 November 2016

Bhaut sunder kavita likhi sahil...... Great liked it

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Sahil Sharma 30 January 2017

Shukriya dost

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Kavita Singh 07 September 2016

wah wah...kya khub likha ha...jane kyu ye zindagi mujhe adhuri si lagti...

0 0 Reply
Sahil Sharma 08 September 2016

Shukriyaaa

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