ਗੁਰੂਓ ਤੇ ਸੰਤੋ ਦੀ ਸੰਗਤ
ਰੂਹ ਨੂੰ ਸੁਕੂਨ ਵਾਸਤੇ
ਗੋਵਿੰਦ ਨਾਮ ਰਬ ਦਾ
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ਗੁੱਸੇ ਤੇ ਗੰਦਗੀ ਨੂੰ ਅੱਗ ਵਿਚ ਸੁਟੋ
ਖੁਸ਼ੀ ਨੂੰ ਖੇਤਾਂ ਤੇ ਫਸਲੋ ਨਾਲ
ਉਸਲੋ ਵਰਗੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਭੰਗੜਾ
ਧਨ ਦੀ - ਰਬੜੀ ਤੇ ਗਾਜਕ ਸਾਰੀ ਸੰਗਤ ਨੂੰ
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मन से कुविचार का स्नान|
कर्म मे सुविचार की अनुभूति|
रंगने की चाहत है अनुभूति को|
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साथ है अभ्यास का
रेन बसेरा है शब्दो का
गति है ध्वनी की
माध्यम है भावो को व्यक्त करने का
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मन के मैल का त्याग।
माना की अपनाना सरल नहीं है।
माना की कठिन है।
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हकीकत के धरातल पर रहते है, अनुभवो से सीखने की कोशिश करते है।
हम तो हर रोज सच से टकराने का प्रयास करते है।
संतोष की छाया में आराम कर।
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हर रोज शाम देने आती है।
थोड़ा सा आराम दे जाती है।
कह कर जाती है तैयार रहने को।
फिर से कर्म करने को।
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आवाज उठती है, चिंगारी बनती है।
सामूहिक आवाज बन जाती है, असर होता है।
निमंत्रण मिलता है बात चीत का माहौल बनता है।
विचारो का आदान प्रदान होता है, सहमति की और कदम बढ़ते है।
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कभी परिस्थिति रोकती है।
कभी वातावरण रोक देता है।
तो कभी असफलता सामने आती है।
तो कभी भेदभाव आड़े आ जाता है।
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जब धरती माँ हाथ फैलती है ।
जब मन्द हवा सासो से मिलती है।
जब कोई वीर सपूत देश के लिए बलिदान देता है।
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