भारत; भारत में गैर रखना Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

भारत; भारत में गैर रखना

Rating: 5.0

'सच को सच और; झठ को झुठ करके जानता,
इंसान वो जो शब्द और; निश: ब्द दोनो जानता.
जिंदगी ये कौनसी; जो जीये जाए मरे,
इंसान वो जो जिंदगी; और मौत दोनो जानता.'

मजहब नहीं सिखाता; आपस में बैर रखना.
मजहब तो नहीं हैं; कहाँ से खैर रखना.

हिंदी हैं हम; वतन हैं; हिंदोस्तां हमारा,
बाकी; बे-वतन हैं; उनका भी शैर रखना.

भारत एक राष्ट्र नहीं हैं; वास्तव में; असल में,
भारत तो धृतराष्ट्र बना हैं; जाती में जैर रखना.

कुछ हैं जो अभीतक; जिवित बचे रहे हम,
आती हैं हमको नय्या; भवसागर में तैर रखना.

युँ ही नहीं जो हमने; सबकुछ पकड लिया हैं.
सिखो तो हमसे दुनियाँवालो, जुबां पे नैर रखना.

परछाई के जैसे भारत, पिछे सरक रहा हैं,
हिंदुस्तान आगे; भारत, भारत में गैर रखना.

Friday, September 5, 2014
Topic(s) of this poem: country
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
१. मेरे देखे; तो धर्म की कोई किताब नहीं हैं. हिंदु धर्म की किताब है; मुस्लिम धर्म की किताब है; सिख्ख धर्म की किताब है; ईसाई धर्म की किताब है; बौध्द धर्म की किताब है; जैन धर्म की किताब है; दुनियाँ में करीब साडेतीनसौ धर्म हैं, उन सभी की कोई ना कोई किताब हैं, पर धर्म की कोई किताब नहीं है;
ईसलिए नैसर्गिक धर्म को प्रतिपादीत करना लगभग असंभव हैं. क्योकि आप हवाला कहाँ से देंगे? सबुत कहाँ से देंगे? और; दो, बावजुद ईस के यदी कोयी ऐसा करता हैं तो, यह माना जाएगा की, वह सिर्फ अपनी अनुभुति प्रतिपादीत कर रहा हैं, ना की जागतिक धर्म. क्योंकि उसका कोई दस्तावेज नहीं हैं.

२. यानी आप हिंदी हैं; ईसलिए वतन आपका हिंदोस्तां हुँवा. तो फिर जो मराठी हैं, गुजराती हैं, बंगाली हैं; पंजाबी हैं; तमिल हैं; उनका क्या? उनके वतन का क्या? वे तो बे-वतन हो गये फिर! शैर यानी जमीन का टूकडा. बाकीयों को बे-वतन कर दिया आपने. ईसलिए उनका वतन; उनकी जमीन उन्ह दे दिजीए.

३. राष्ट्र एक भावणा हैं, की हम एक हैं. और उसकी ईकाई हैं जाती. भारत अनेक जातीयों का समुह हैं. ईसलिए भारत एक राष्ट्र नहीं हैं. पर यदी हम भारत को एक राष्ट्र बनाना चाहे तो बना सकते हैं. लेकिन ईसके लिए हमे भारत वर्ष में रहने वाली सभी जातीयों का खुन आपस में मिलाना होगा और धर्मो का भी, ताकी वे सब मिलकर एक जाती; एक राष्ट्र बन जाए. भारत कानुन बनाकर ऐसा कर सकता हैं, बशर्ते की हम चाहते हो. अन्यथा उपदेश, राष्ट्रगीत आदी बेमानी हैं. उल्टे हम अपनी जातीयों में जैर (नाल) रखकर भारत को चाहे जबतक असभ्य बनाए रख सकते हैं. कोई भी जाती अपने आप में असभ्य नहीं होती; पर किसी देश को वे असभ्य जरुर बनाती हैं. क्योकि वे उस देश को एक राष्ट्र बनने से रोकती है.

४. हम कहते हैं की, हमारी संस्कृती विश्व की एक प्राचीनतम संस्कृती हैं. और अनेक आक्रमणो के बावजुज यह जिवीत हैं. लेकिन जिसके बीना कोई भी विज्ञान विकसीत नहीं हो सकता उस गणित के हम निर्माणकर्ता; शुन्य के खोजकर्ता, विश्व में आज कहाँ हैं? टेक्नॉलॉजी की शुरुवात जीस चीज के अविष्कार के साथ शुरु होती हैं उस कुम्हार के चाक को हमने खोजा. पर आज हम क्यो पिछड गये? ध्यान हमने खोजा. दुनियाँ को शांती और अमन का संदेश हमने दिया. पर आज हम जीवन के हर क्षेत्र में जैसे पिछड गये हैं. और हम कहते हैं की हम जीवीत हैं. मगर जीवीत रहने में और जीवीत रहने में फर्क हैं. यदी हम कहीं पहुँचते नहीं हैं तब भी हम जीवीत रह सकते हैं. पर यह नांव का पानी पर मात्र तंरगना हुवाँ. कहीं पहुँचना न हुवाँ.

५. हम बडे ज्ञानी हैं. हमने घर बैठे ही आत्मा; परमात्मा; स्वर्ग; नरक सब जान लिया हैं. नहीं जाना ते सिर्फ अपने आप को! पर हमे देखने वाले जानते हैं की हम क्या हैं!

६. और एक अजीबोगरीब बात! ईस संदर्भ में मैं एक कहनी (जो ओशो की हैं.) बताना चाहुँगा:
एक व्यक्ति को यह शाप दिया गया की उसकी परछाई नहीं गीरेगी. तब उस व्यक्ति को कुछ नहीं लगा. उसने सोचा की क्या फर्क पडता हैं. पर जब लोगों को पता चला की उसकी परछाई नहीं गीरती तो वे उसे भूत; पिशाच् समझने लगे. उन्होने उसे अछुत मानकर गांव के बाहर खदेड दिया. उसका जीवन तो जैसे कहीं का न रहां. (उस कहानी में मैं ये जोड दूं) की, आज हम 'भारत' के साथ ठिक ऐसा हीं कर रहे हैं, पर उल्टी तरहा से. हमने 'भारत' को 'हिंदुस्तान' की परछाई बनाकर रख दिया हैं. जबकी यह देश हिंदुस्तान नहीं बल्की भारत हैं!
COMMENTS OF THE POEM
Dhirajkumar Taksande 14 September 2014

Very good poem. Nice piece of work.

0 0 Reply
Dr Pintu Mahakul 05 September 2014

The name of this country is changed many times in past. Bharat is one of the ancient name but meaning of India is not similar to Bharat although both the terms are used simultaneously for the same country. The name Hindustan is not given by ancient Indians to this country but western people call this land as Hindustan due to the influence of Sindhu civilization which is pronounced by western people sometimes as Indu and sometimes as Hindu. Hindustan is derivative of this. Mass of multi ritualistic and diversified inhabitants of this subcontinent is not well understood at that time in ancient days and people specifically while British came named the people's religion as Hindu which is still continuing. Generally ancient Arabic people have given name of Hindustan to this country, which means the land where multi cultural multi believers and multi ritualistic people reside and have freedom and unity with diversity. It does not matter in which name people call, unity matters a lot. Style of representing your poem is fine. Thanks for sharing this with us.

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success