Lost! Lost! ! Lost! ! !
A Childhood
Pure, Innocent and Priceless
Lost
...
When two nations decide to fight
so as to test their might,
and satiate their false pride;
The soldiers have no fright;
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माना जीवन क्षणभंगुर है, (पर) सबमें अमरत्व का अंकुर है।
कहते हैं जिन्हें हम अमर यहाँ, है देह तो उनकी पंचभूत;
उनकी कर्म-कस्तूरी की महक से किन्तु, है हर मानस-चित्त अभिभूत।
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ज़िन्दगी ज़िन्दादिली का नाम है।
मुर्ददिल क्या खाक़ जिया करते हैं।।
सर पर जूनून, दिल में हौसला लिए,
दीवाने नामुमकिन को आसान किया करते हैं।
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अबीर उड़े, गुलाल उड़े, आशाओं की रंगोली है।
प्रेम रंग में जो रंग जाओ, तो मानो कि होली है।।
छेड़छाड़ है, हंसी हैं ताने, हास्य-विनोद, ठिठोली है।
वैर-द्वेष को फूंक जो डालो, तो मानो कि होली है।।
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Prides of lions
Packs of wolves
Bees’ swarms
Deer’s herds
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When the dawn arrives, riding the steed of hope
to inveigle us to the realm of exertion,
and the body proceeds quietly
from sloth to vigour;
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अहा! बचपन के वो दिन।
खेलकूद जब दोष नहीं था,
सिर पर बस्ते का बोझ नहीं था,
धुर मस्ती में दिन थे गुज़रते,
रातें कटती थीं तारे गिन।
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दीपों की शुभ ज्योति श्रृंखला ने
ध्वस्त किया तिमिर का गर्व;
अमावस्या की रात्रि को उजला
करने आया फिर दीपावली पर्व।
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श्यामल मेघों से आप्त नभ, तरसे मन को हर्षाता है;
भीषण गर्मी के ताप को हरने, वर्षा के मौसम आता है।
सूखे पेड़ों की तप्त देह पर, यौवन की मस्ती फलती है;
वर्षा की प्रथम फुहार से तृप्त, मिटटी भी कस्तूरी लगती है।
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