अकांशाकों के घोड़े पर सवार जब मनुष्य धूल उडाता चला जाता है
तब समय उन थपेड़ों की छाप का हिसाब रख बड़ा मुस्कुराता है
न समय से पहले कुछ मिला है न समय के बाद ही कुछ मिलेगा
जो भी मिला है वो समय के साथ ही मिलेगा
क्या आपने सूरज को नहीं देखा जो मौसम के साथ चलता है
क्या आपने हवा को नहीं देखा कैसे अभिन्न दिशा में चलती है
समय के साथ या समय के पीछे -उतार से या चढाव से
जिस ओर ले चले ये बस वहीँ बिना सवाल किए
भाग्य से जो बंधे है हाथ, कितना उछाल ले या कूद ले
सिमित उन्ही सीमाओं में, एक बंधन जिसकी डोर ओझल है
चलना ही जीवन का एक मूल मंत्र है और हम चले ही जा रहे हैं
न समय से पहले कुछ मिला है न समय के बाद ही कुछ मिलेगा भाग्य से जो बंधे है हाथ, कितना उछाल ले या कूद ले सिमित उन्ही सीमाओं में, एक बंधन जिसकी डोर ओझल है एक ऐसी शक्ति है जो हमारी आँखों से ओझल है परन्तु सारी कायनात को चलाती है, हमारे जीवन को संचालित करती है. वही शक्ति हमारी सामर्थ्य तथा दिशा का निर्धारण करती है. एक प्रभावशाली रचना को शेयर करने के लिये धन्यवाद, मित्र मो. आसिम जी.
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चलना ही जीवन का एक मूल मंत्र है और हम चले ही जा रहे हैं A thoughtful poem.