गुलाल Poem by Nitesh K. mahlawat

गुलाल

आपकी निगाह ऐ करम में
क्या क्या अंजाम हो लिए,
तोड़ कर खुदा का घर
कुछ काशी चले गए
कुछ मदीने हो लिए ।
खुदा का घर टूटा है,
कुछ तो लोग कहेंगे
जन जन के तानो को
श्रीराम कैसे सहेंगे ।
ईश्वर के काफिरों का क्या हाल हो गया
राह में छाव थी पर धूप में बेहाल हो गया ।
शायद खुदा के गूलाल में ही मिलावट रही होगी
तेरे दर पर किसी का चोला हरा तो किसी का लाल हो गया ।

नितेश र महलावत ।

गुलाल
Tuesday, December 29, 2015
Topic(s) of this poem: poetic expression
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Story of religious context in modern time in India
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