में भूल जाता हूँ Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

में भूल जाता हूँ

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में भूल जाता हूँ

में भूल जाता हूँ
पर समहल भी जाता हूँ
मिल जाए यदि कोई दोस्त, खूब मुस्कुरा लेता हूँ
मिली हुई खुशियों को, खूब दोहराता हूँ।

दिन रात युहीं बीत जाते
मंज़िल को नहीं बतलाते
में सोचता हूँ अब क्या कर लूँ?
मेहनत से पसीना बहा लूँ!

होगी हसाई और puri naa hogi kaamnaa
फिर भी ना लगेगा ये कैसा है ज़माना?
बसी दिली बात को मैंने, अपने को समजाना
बातें अच्छी होगी तो कैसे लगे अफ़साना

कोई गरीब हो या तवंगर
में रख लू दिल में पूरे जीवनभर
ना ण कोसु किसी को अपने मन से
कर सकु ना मदद किसी को अपने थोड़े धन से

अब से कुछ नया करना
सब से मिलना ओर बिछड़ना
फिर भी अपनों को याद दिलाना
कटुता को रखना दुर और गले से लगाना

होगी हसाई और अवमानना
फिर भी ना लगेगा ये कैसा है ज़माना?
बसी दिली बात को मैंने, अपने को समजाना
बातें अच्छी होगी, तो कैसे लगे अफ़साना

में भूल जाता हूँ
Friday, January 15, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 16 January 2016

Snehal Mehta likes this. Comments Hasmukh Mehta Hasmukh Mehta welcome v Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 15 January 2016

welcome Chandan Patwa likes this.

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Rajnish Manga 15 January 2016

आपकी हिंदी कविताओं में भी जीवन के प्रति आपका सकारात्मक झलकता है. बहुत सुंदर. धन्यवाद. सब से मिलना ओर बिछड़ना फिर भी अपनों को याद दिलाना कटुता को रखना दुर और गले से लगाना

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Mehta Hasmukh Amathalal 15 January 2016

होगी हसाई और अवमानना फिर भी ना लगेगा ये कैसा है ज़माना? बसी दिली बात को मैंने, अपने को समजाना बातें अच्छी होगी, तो कैसे लगे अफ़साना

1 0 Reply
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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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