में भूल जाता हूँ
में भूल जाता हूँ
पर समहल भी जाता हूँ
मिल जाए यदि कोई दोस्त, खूब मुस्कुरा लेता हूँ
मिली हुई खुशियों को, खूब दोहराता हूँ।
दिन रात युहीं बीत जाते
मंज़िल को नहीं बतलाते
में सोचता हूँ अब क्या कर लूँ?
मेहनत से पसीना बहा लूँ!
होगी हसाई और puri naa hogi kaamnaa
फिर भी ना लगेगा ये कैसा है ज़माना?
बसी दिली बात को मैंने, अपने को समजाना
बातें अच्छी होगी तो कैसे लगे अफ़साना
कोई गरीब हो या तवंगर
में रख लू दिल में पूरे जीवनभर
ना ण कोसु किसी को अपने मन से
कर सकु ना मदद किसी को अपने थोड़े धन से
अब से कुछ नया करना
सब से मिलना ओर बिछड़ना
फिर भी अपनों को याद दिलाना
कटुता को रखना दुर और गले से लगाना
होगी हसाई और अवमानना
फिर भी ना लगेगा ये कैसा है ज़माना?
बसी दिली बात को मैंने, अपने को समजाना
बातें अच्छी होगी, तो कैसे लगे अफ़साना
आपकी हिंदी कविताओं में भी जीवन के प्रति आपका सकारात्मक झलकता है. बहुत सुंदर. धन्यवाद. सब से मिलना ओर बिछड़ना फिर भी अपनों को याद दिलाना कटुता को रखना दुर और गले से लगाना
होगी हसाई और अवमानना फिर भी ना लगेगा ये कैसा है ज़माना? बसी दिली बात को मैंने, अपने को समजाना बातें अच्छी होगी, तो कैसे लगे अफ़साना
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