जय नेताजी जय परधान उजली कुर्ती मुंह में पान Poem by NADIR HASNAIN

जय नेताजी जय परधान उजली कुर्ती मुंह में पान

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जय नेताजी जय परधान उजली कुर्ती मुंह में पान
बेटा खाए शाही खाना भूक मरे मज़दूर किसान
दफ्तर का अफसर हो या फिर गाओं शहर का थानेदार
सौ में अस्सी चोर लुटेरा नव्वे है बेईमान
जय नेताजी जय परधान..................................

ना तो रोड ना बिजली पानी मिली ना सूखी रोटी
मिटी ग़रीबी ना लाचारी चढ़ी ना डोली बेटी
सोई जनता जाग ना पाई होश नहीं ना बेदारी
मिटगई देश से गांधी गीरी कौन करे बलिदान
जय नेताजी जय परधान..................................

अंग्रेज़ों ने देश को लूटा वह तो थे प्रवासी
भारत माँ को लूटने वाला आज है देश का वासी
हिन्दुस्तानी माल खज़ाना पहुंचा स्विट्ज़रलैंड
हरी भरी ये धरती थी अब चटयल है मैदान
जय नेताजी जय परधान..................................

मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा, यकजहती और भाईचारा
माँ की ममता बहन की राखी, कोई सुरक्छित रहा ना बाक़ी
राज सिंघासन के ही खातिर हरसू क़त्लेआम किया
धर्म को बांटा भर्मित करके बेच लिया ईमान
जय नेताजी जय परधान..................................

सरेआम है गुंडागर्दी बनगए रहबर चोर डकैत
वक़्त ने ऐसी पलटी मारी आदिल बनगए डिप्लोमैट
सज़ा दिलाने ज़ालिम को इन्साफ को पाने की धुन में
भूका पयासा भटक रहा है हर सच्चा इंसान
जय नेताजी जय परधान..................................

By: नादिर हसनैन

जय नेताजी जय परधान उजली कुर्ती मुंह में पान
Saturday, August 8, 2015
Topic(s) of this poem: corruption
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